महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 71 श्लोक 1-18
एकसप्ततितम (71) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भीष्म अर्जुन,आदि योद्धाओं का घमासान युद्ध
संजय कहते हैं- महाराज! अपने भाइयों तथा दूसरे राजाओं को भष्म के साथ उलझा हुआ देख अस्त्र उठाये हुए अर्जुन ने भी गंगानन्दन भीष्म पर धावा किया। पान्यजन्य शंख और गाण्डीव धनुष का शब्द सुनकर तथा अर्जुन के ध्वज को देखकर हमारे सब सैनिकों के मन मेंभय समा गया। महाराज! अर्जुन का ध्वज सिंनपुच्छ के समान वानर की पूँछ से युक्त था। वह प्रज्वलित पर्वत-सा दिखायी देता था। वृक्षों में कहीं भी अटकसत नहीं था। आकाश में उदित हुए धूमकेतु-सा दृष्टिकोचर होता था। वह अनेक रंगों से सुशोभित,विचित्र,दिव्य एवं वानरचिन्ह से युक्त था। इस प्रकार हमने गाण्डीवधारी अर्जुन के उस ध्वज को उस समय देखा। उस महान् समर में हमारे पक्ष के योद्धाओं ने सुवर्णमय पीठ से युक्त गाण्डीव धनुष को आकाश के भीतर मेघों की घटा में चमकती हुई बिजली के समान देखा। अर्जुन आपकी सेना का संहार करते हुए इन्द्र के समान गर्जना कर रहे थे। इस समय हम लोगों ने उनके हस्ततलों का बड़ा भयंकर शब्द सुना। भयंकर अस्त्र वाले अर्जुन ने प्रचण्ड आँधी,बिजली तथा गर्जना से युक्त मेघ के समान सम्पूर्ण दिशाओं को अपनी बाण वर्षा से आप्लावित करते हुए गंगानन्दन भीष्म पर सब ओर से धावा किया। उस समय हम लोग उनके अस्त्रों से इतने मोहित हो गये थे कि हमें पूर्व और पश्चिम का भी पता नहीं चलता था। भरतश्रेष्ठ! आपके सभी योद्धा घबराकर यह सोचने लगे कि हम किस दिशा में जायें। उनके सारे वाहन थक गये थे। कितनों के घोडे़ मार डाले गये थे। उन सबका हार्दिक उत्साह नष्ट हो गया था। वे सब-के-सब एक दूसरे से सटकर आपके पुत्रों के साथ भीष्मजी की ही शरण में छिपने लगे। उस युद्ध स्थल में उन्हें केवल शान्तनुनन्दन भीष्म ही आर्त सैनिकों को शरण देने वाले प्रतीत हुए। वे सभी लोग ऐसे भयभीत हो गये कि रथी रथों से और घुड़सवार घोड़ों की पीठों से गिरने लगे तथा पैदल सैनिक भी पृथ्वी पर लोट-पोट हो गये। भारत! बिजली की गड़गड़ाहट के समान गाण्डीव का गम्भीर घोष सुनकर हमारे समस्त सैनिक भयभीत हो लुकने-छिपने लगे। तत्पश्चात् काम्बोजराज सुदक्षिण काम्बोजदेशीय विशाल एवं शीघ्रगामी घोड़ों पर आरूढ़ हो युद्ध के लिये चले। उनके साथ गोपायन नाम वाले कई हजार गोपसैनिक थे। प्रजानाथ! समस्त कलिंगदेशीय प्रमुख वीरों से घिरे हुए कलिंगराज भी युद्ध के लिये आगे बढ़े। उनके साथ मद्र,सौवीर,गान्धार और त्रिगर्तदेशीय योद्धा भी मौजूद थे। इनके सिवा राजा जयद्रथ सम्पूर्ण राजाओं को साथ ले दुःशासन को आगे करके चला। उसके साथ भी अनेक जन पदों के लोगों की पैदल सेना मौजूद थी। इसके सिवा आपके पुत्र की आज्ञा से चैदरह हजार कच्छे घुड़सवार सुबलपुत्र शकुनि को घेरकर खड़े हुए। रतश्रेष्ठ! फिर पृथक् पृथक् रथ और वाहन लिये आपके पक्ष के ये सब महारथी वीर समरागण में अर्जुन पर अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार करने लगे। इधर,चेदि और काशि देश के पैदल सैनिकों के तथा पान्चाल और संजय देश के रथियों सहित धृष्टद्युम्न आदि समस्त पाण्डवीर धर्म पुत्र युधिष्ठिर की आज्ञा से समरभूमि में आपके सैनिकों का संहार करने लगे। रथियों,हाथियों,घोड़ों और पैदलों के पैरों से उड़ी हुई धूलराशि ने मेघों की भारी घटा के समान आकाश में व्याप्त होकर उस युद्ध को भयंकर बना दिया।
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