महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 72 श्लोक 25-35
द्विसप्ततितम (72) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
भरतनन्दन! तदनन्तर एक तीखे और पानीदार भल्ल से उन्होंने भीमसेन के धनुष के दो टुकड़े कर दिये। महाबली भीमसेन ने उस कटे हुए धनुष को फेंककर दूसरा धनुष ले बहुत से बाणों द्वारा युद्धस्थल में शान्तनुनन्दन भीष्म को अत्यन्त पीड़ा दी। जनेश्वर। तत्पश्चात् उस युद्ध में सात्यकिने शीघ्र ही आपके ताऊ भीष्म के पास पहुँचर धनुष को कानों तक खींचकर चलाये हुए बहुत से तीखे एवं तेज सायकों द्वारा उन्हें बहुत पीड़ा दी।। तब भीष्म ने अत्यन्त भयंर तीक्ष्ण बाण का संधान करके सात्यकि के रथ से उनके सारथि को मार गिराया। राजन् रथ सारथि के मारे जाने पर सात्यकि के घोड़े वहाँ से भाग चले। मन और वायु के समान वेगवाले वे घोड़े जिधर राह मिली, उधर ही दौड़नेलगे। इससे सारी सेना में कोलाहल मच गया। महात्मा पाण्डवों के दल में हाहाकार होने लगा। अरे। दौड़ो, पकड़ो, घोड़ों को रोको़ भागो। सात्यकिके रथ की ओर इस तरह का शब्द गूँजने लगा। इसी बीच में शान्तनुनन्दन भीष्म ने पाण्डव सेना का उसी प्रकार विनाश आरम्भ किया, जैसे देवराज इन्द्र आसुरी सेना का संहार करते हैं। भीष्म के द्वारा पीड़ित हुए पाञ्चाल और सोमक युद्ध का दृढ़ निश्चय लेकर भीष्म की हो ओर दौड़े। धृष्टद्युम्न आदि समस्त पाण्डव योद्धा आपके पुत्र की सेना को जीतने की इच्छा से युद्ध में शान्तनुनन्दन भीष्म पर ही चढ़ आये। राजन्। इसी प्रकार भीष्म, द्रोण आदि कौरव योद्धा भी बड़े वेग से पाण्डव सेना पर टूट पड़े; फिर तोदोनों दलों मेंभयंकर युद्ध होने लगा।
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