महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 82 श्लोक 1-20

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द्वयशीतितम (82) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्वयशीतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

श्रीकृष्ण और अर्जुन से डरकर कौरवसेना में भगदड़, द्रोणाचार्य और विराट का युद्ध, विराट-पुत्र शंख का वध, शिखण्डी और अश्वत्थामा का युद्ध, सात्यकि के द्वारा अलम्बुषकी पराजय, धृष्टद्युम्नके द्वारा दुर्योधन की हार तथा भीमसेन और कृतवर्मा का युद्ध

संजय कहते हैं- राजन्! इस प्रकार संग्राम आरम्भ होने पर महामना पाण्डुनन्दन अर्जुन से पराजित हो सशर्मा युद्धभूमि से दूर हो गया और अन्यान्य वीर भी भाग खड़े हुए। आपको समुद्र जैसी विशाल वाहिनी में तुरंत ही हलचल मच गयी। उस समय गंगानन्दन भीष्म ने शीघ्रतापूर्वक अर्जुन पर आक्रमण किया। राजा दुर्योधन ने रणभूमि में अर्जुन का पराक्रम देखकर बड़ी उतावली के साथ निकट जा उन समस्त नरेशों से कहा। उन नरेशों के सम्मुख सारी सेना के बीच में शूरवीर महाबली सुशर्मा को अत्यन्त हर्ष प्रदान करता हुआ सा दुर्योधन यों बोला-‘वीरो! ये शान्तनुनन्दन कुरूश्रेष्ठ भीष्म अपना जीवन निछावर करके सम्पूर्ण हृदय से अर्जुन के साथ युद्ध करना चाहते हैं। ‘सारी सेना के साथ युद्ध के लिये यात्रा करते हुए मेरे वीर पितामह भरतनन्दन भीष्म की आप सब लोग प्रयत्नपूर्वक रक्षा करें’। महाराज! ‘बहुत अच्छा’ कहकर राजाओं वे सम्पूर्ण सेनाएँ पितामह भीष्म के पास गयीं। तदनन्तर शान्तनुनन्दन भीष्म युद्धभूमि में सहसा अर्जुन के सामने गये। भरतवंशी भीष्म को आते देख महाबली अर्जुन उनके पास जा पहुँचे। वे जिस रथ पर आरूढ़ होकर आये थे, वह अत्यन्त शोभायमान था। उसमें श्वेत वर्ण के विशाल घोड़े जुते हुए थे। उस पर भयंकर वानर से उपलक्षित ध्वजा फहरा रही थी और उसके पहियों से मेघ के समान गम्भीर शब्द हो रहा था। किरीटधारी अर्जुन को युद्ध में समीप आते देख भय के मारे समस्त सैनिकों के मुँह से भयानक हाहाकार प्रकट होने लगा। हाथ में बागडोर लिये मध्यान्हकाल के दूसरे सूर्य के समान तेजस्वी श्रीकृष्ण को युद्धभूमि में उपस्थित देख कोई भी योद्धा उन्हें भर आँख देख भी न सके। इसी प्रकार श्वेत घोड़े तथा श्वेत धनुष वाले शान्तनुनन्दन भीष्म को श्वेत ग्रह के समान उदित देख पाण्डव सैनिक उनसे आँख न मिला सके। महामना त्रिगतों ने अपने भाइयों, पुत्रों तथा अन्य महारथियों के साथ उपस्थित होकर भीष्म को सब ओर से घेर रक्खा था। दूसरी ओर द्रोणाचार्य ने मत्स्यराज विराट को युद्ध में एक बाण से बींध डाला तथा एक बाण से उनका ध्वज और एक से धनुष काट डाला। सेनापति विराट ने वह कटा हुआ धनुष फेंककर वेगपूर्वक दूसरे सुदृढ़ धनुष को हाथ में लिया, जो भार सहन करने में समर्थ था। उन्होंने उसके द्वारा प्रज्वलित सर्पों की भाँति विषैले नागों की सी आकृतिवाले बाण छोड़कर तीन से द्रोणाचार्य को और चार बाणों से उनके घोड़ों को बींध डाला। फिर एक बाण से ध्वज को, पाँच बाणों से सारथि को ओर एक से धनुष को बींध डाला। इससे द्विजश्रेष्ठ द्रोणाचार्य को बड़ा क्रोध हुआ। भरतश्रेष्ठ! फिर द्रोण ने झुकी हुई गाँठवाले आठ बाणों द्वारा विराट के घोड़ों को और एक बाण से सारथि को मार डाला। सारथि और घोड़ों के मारे जाने पर रथियों में श्रेष्ठ विराट अपने रथ से तुरंत कूद पडे़ और पुत्र के रथ पर आरूढ़ हो गये। अब उन दोनों पिता-पुत्रों ने एक ही रथ पर बैठकर महान् बाणवर्षा के द्वारा द्रोणाचार्य को बलपूर्वक आगे बढ़ने से रोक दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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