महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 83 श्लोक 1-19
त्र्यशीतितम (83) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
इरावान् के द्वारा विन्द और अनुविन्द की पराजय, भगदत्त से घटोत्कच का हारना तथा मद्रराज पर नकुलऔर सहदेव की विजय
धृतराष्ट्र बोले, संजय। मैंने तुम्हारे मुख से अभी तक पाण्डवों के मेरे पुत्रों के साथ जो बहुत से विचित्र द्वैरथ युद्ध हुए हैं, उनका वर्णन सुना।परंतु सूत। तुमने अभी तक मेरे पक्ष में घटित हुई कोई हर्ष की बात नहीं कही है, उल्टे पाण्डवों को प्रतिदिन हर्ष से पूर्ण और अमग्न;अपराजित बताते हो ।मेरे पुत्रों को तेज और बल से हीन, खिन्नचित्त और युद्ध में पराजित बताते हो। संजय। यह सब प्रारब्ध का ही खेल है, इसमें संशय नहीं है । शक्ति से पुरूषार्थ दिखाते हुए अपने बल और उत्साह के अनुसार युद्ध में सफलता प्राप्त करने की चेष्टा करते हैं ।परंतप! नरेश! जैसे देवनदी गङ्गाजी का जल स्वादिष्ट होकर भी महासागर के संयोग से उसी के गुण का सम्मिश्रण हो जाने के कारण खारा हो जाता हैं, उसी प्रकार आपके पुत्रों का पुरूषार्थ युद्ध में वीर पाण्डवों तक पहुंचकर व्यर्थ हो जाता हैं । कुरूश्रेष्ठ! कौरव यथाशक्ति प्रयत्न करते और दुष्कर कर्म कर दिखाते हैं। अत: उनके ऊपर आपको दोषारोपण नहीं करना चाहिये ।प्रजानाथ! पुत्र सहित आपके अपराध से ही यह भूमण्डल-का घोर एवं महान् संहार हो रहा है, जो यमलोक की वृद्धि करने वाला है ।नरेश्र्वर! अपने ही अपराध से जो संकट प्राप्त हुआ है, उसके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये। (आपके अपराध के कारण) राजा लोग भी इस भूतल में सर्वथा अपने जीवन की रक्षा नहीं कर पाते हैं ।
वसुधा के नरेश युद्ध में पुण्यात्माओं के लोकों की इच्छा करते हुए शत्रु की सेना में घुसकर युद्ध करते हैं और सदा स्वर्ग को ही परम लक्ष्य मानते हैं ।महाराज! उस दिन पूर्वाह्णकाल में बड़ा भारी जनसंहार हुआ था। आप एकचित होकर देवासुर-संग्राम के समान उस भयंकर युद्ध का वृतान्त सुनिये ।अवन्ती के महाबली महाधनुर्धर और विशाल सेना से युक्त राजकुमार विन्द और अनुविन्द, जो युद्ध में उन्मत्त होकर लड़ने वाले हैं, अर्जुन पुत्र इरावान् को सामने देखकर उसी से भिड़ गये । उन तीनों वीरों का युद्ध अत्यन्त रोमाञ्चकारी हुआ। इरावान् ने कुपित होकर देवताओं के समान रूपवान् दोनों भाई विन्द और अनुविन्द को झुकी हुई गांठ वाले तीखे बाणों से तुरंत घायल कर दिया। वे भी समराङ्गण में विचित्र युद्ध करने वाले थे। अत: उन्होंने भी इरावान् को बींध डाला । नरेश्वर! दोनों ही पक्ष वाले अपने शत्रु का नाश करने के लिये प्रयत्नशील थे। दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों का निवारण करने की इच्छा रखते थे। अत: युद्ध करते समय उनमें कोई अन्तर नहीं दिखायी देता था । राजन्! उस समय इरावान् ने अपने चार बाणों द्वारा अनुविन्द के चारों घोड़ों को यमलोक पहुंचा दिया ।आर्य! राजन्! तदनन्तर दो तीखे भल्लों द्वारा उन्होंने युद्ध-स्थल में उसके धनुष और ध्वज काट डाले। यह अद्भूत सी बात हुई । तत्पश्चात् अनुविन्द अपना रथ त्यागकर विन्द के रथ पर जा बैठा और भार वहन करने में समर्थ दूसरा परम उत्तम धनुष लेकर युद्ध के लिये डट गया । रथियों में श्रेष्ठ वे दोनों आवन्त्य वीर रणभूमि में एक ही रथपर बैठकर बड़ी शीघ्रता के साथ महामना इरावान् पर बाणों की वर्षा करने लगे ।
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