महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 84 श्लोक 1-20

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चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद


युधिष्ठिर से राजा श्रुतायुका पराजित होना, युद्ध में चेकितान और कृपाचार्य का मूर्छित होना, भूरिश्रवा से धृष्टशकेतु का और अभिमन्यु से चित्रसेन आदि का पराजित होना एवं सुशर्मा आदि से अर्जुन का युद्धारम्भ

संजय कहते हैं- महाराज! जब सूर्यदेव दिन के मध्यजभाग में आ गये, तब राजा युधिष्ठिर ने श्रुतायु को देखकर उसकी ओर अपने घोड़ों को बढा़या। उस समय झुकी हुई गांठ वाले नौ तीखे सायकों द्वारा शत्रुदमन श्रुतायु को घायल करते हुए राजा युधिष्ठिर ने उस पर धावा किया। तब महाधनुर्धर राजा श्रुतायु ने युद्ध में धर्मपुत्र युधिष्ठिर के चलाये हुए बाणों का निवारण करके उन कुन्तीकुमार को सात बाण मारे। संग्राम में वे बाण महात्मा युधिष्ठिर के शरीर में उनके प्राणों को ढ़ूढ़ते हुए-से कवच छेदकर घुस गये और उनका रक्त पीने लगे। महामना श्रुतायु के बाणों से घायल होने पर पाण्डुरनन्दन युधिष्ठिर अत्यन्त कुपित हो उठे और उन्होंने रणक्षेत्र में बराहकर्ण नामक एक बाण चलाकर राजा श्रुतायु की छाती में चोट पहुंचायी। तत्पश्चाबत् रथियों में श्रेष्ठा कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने भल्ल नामक दूसरे बाण से महामना श्रुतायु के ध्वतज को काटकर तुरंत ही रथे से पृथ्वीी पर गिरा दिया। राजन्! ध्वेज को गिरा हुआ देख राजा श्रुतायु ने अपने सात तीखे बाणों द्वारा पाण्डुसनन्दन युधिष्ठिर को घायल कर दिया। यह देख धर्मपुत्र युधिष्ठिर प्रलयकाल में सम्पूर्ण भूतों को जला डालने की इच्छा वाले अग्निदेव के समान क्रोध से प्रज्वलित हो उठे। महाराज! पाण्डुापुत्र युधिष्ठिर को कुपित देख देवता, गन्धर्व और राक्षस व्यथिउत हो उठे तथा सारा जगत् भी भय से व्याकुल हो गया। उस समय समस्त प्राणियों के मन में यह विचार उठा कि आज निश्च य ही ये राजा युधिष्ठिर कुपित होकर तीनों लोकों को भस्म कर डालेंगे। नरेश्वयर! पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर के कुपित होने पर उस समय सम्पूर्ण लोकों की शान्ति के लिये देवता तथा ॠषिलोग श्रेष्ठ‍ स्वस्तिवाचन करने लगे। उन्होंने क्रोध से व्याप्त हो मुख के दोनों कोनों को चाहते हुए अपने शरीर को प्रलयकाल के सूर्य के समान अत्यन्त भयंकर बना लिया। प्रजानाथ! भरतनन्दन! उस समय आपकी सारी सेनाएं वहां अपने जीवन से निराश हो गयीं। परंतु महायशस्वी युधिष्ठिर ने धैर्यपूर्वक अपने क्रोध को दबा दिया और श्रुतायु के विशाल धनुष को, जहां उसे मुट्ठी-से पकड़ा जाता है, उसी जगह से काट दिया। राजन्! धनुष कट जाने पर महाबली राजा युधि‍ष्ठिर ने श्रुतायु की छाती में नाराच से प्रहार किया। फिर उन्होंने समस्त सेनाओं के देखते-देखते रणक्षेत्र में महामना श्रुतायु के घोड़ों को तुरंत मार डाला और उनके सारथि को भी शीघ्र ही मौत के मुख में डाल दिया। रथ के घोडे़ मारे गये, यह देखकर तथा युद्ध में राजा युधिष्ठिर के पुरूषार्थ का भी अवलोकन करके श्रुतायु उस समय बडे़ वेग से रथ छोड़कर भाग गया। राजन्! संग्राम में धर्मपुत्र युधिष्ठिर द्वारा महाधनुर्धर श्रुतायु-के पराजित होने पर दुर्योधन की सारी सेना पीठ दिखाकर भागने लगी। महाराज! ऐसा पराक्रम करके धर्मपुत्र युधिष्ठिर मुंह फैलाये काल के समान आपकी सेना का संहार करने लगे। उधर वृष्णिवंशी चेकितान ने रथियों में श्रेष्ठस कृपाचार्य को सब सेनाओं के देखते-देखते अपने सायकों से आच्छादित कर दिया।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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