महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 89 श्लोक 23-40
एकोननवतितम (89) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
राजन् ! धनुर्धर द्रोणाचार्य के द्वारा समरभूमि में मारे जाते हुआ महामना सृज्जयों का महान आर्तनाद सुनायी देने लगा द्रोणाचार्य के मारे हुए बहुत से क्षत्रिय रणभूमि में व्याधि ग्रस्त मुनष्यों की भाँति छटपटाते हुए दिखायी देते थे। भरतनन्दन! भूख से पीड़ित मनुष्यों की भाँति कूजते, क्रन्दन करते और गरजते हुए योद्धाओं का शब्द निरन्तर सुनायी देता था। इसी प्रकार महाबली भीमसेन क्रोध में भरे हुए दूसरे काल के समान कौरव सैनिकों का घोर संहार करने लगे। उस महायुद्ध में परस्पर मार-काट करने वाले सैनिकों की रक्तराशि को प्रवाहित करने वाली एक भयंकर नदी बह चली। महाराज ! कौरवों और पाण्डवों का वह घोर महासंग्राम यमलोक की वृद्धि करने वाला था। तब युद्ध में विशेष वेगशाली भीमसेन ने कुपित हो हाथियों की सेना में प्रवेश कर उन्हें काल के गाल में भेजना आरम्भ किया। भारत ! वहाँ भीम के नाराचों से पीड़ित हाथी गिरते, चिग्घाड़ते, बैठ जाते अथवा सम्पूर्ण दिशाओं में चक्कर लगाने लगते थे। आर्य ! सूँड़ तथा दूसरे-दूसरे अंगों के कट जाने से हाथी भयभीत हो क्रोच्च पक्षी की भाँति चीत्कार करते और धराशायी हो जाते थे। नकुल और सहदेव ने घुड़सवारों की सेना पर आक्रमण किया। राजन् ! उन घोडों ने सोने की कलँगी तथा सोने के ही अन्य आभूषण धारण किये थे। वे सब सैकड़ों और सहस्त्रों की संख्या में मरकर गिरते दिखायी देते थे। राजन् ! वहाँ गिरते हुए घोड़ों की लाशों से सारी पृथ्वी पट गयी। किन्ही की जीभ निकल आयी थी, कोई लंबी साँस खींच रहे थे, कोई धीरे-धीरे अव्यक्त शब्द करते और कितनों के प्राण निकल गये थे। नरश्रेष्ठ ! इस प्रकार विभिन्न रूपधारी घोड़ों से आच्छादित होने के कारण इस पृथ्वी की अद्भूतशोभा हो रही थी। भारत ! प्रजानाथ ! जहाँ-जहाँ अर्जुन के द्वारा युद्ध में मारे गये राजाओं से भरी हुई वह रणभूमि बड़ी भयानक जान पड़ती थी। राजन् ! टूटे हुए रथ, कटे हुए ध्वज, छिन्न-भिन्न हुए बड़े-बडे़ आयुध, चवँर, व्यजन, अत्यन्त प्रकाशमान छत्र, सोने के हार, केयूर, कुण्डलमण्डित मस्तक, गिरे हुए शिरोभूषण (पगड़ी आदि), पताका, सुन्दर अनुकर्ष, जोत और बागडोर आदि से आच्छादित हुई वह संग्राम भूमि ऐसी जान पड़ती थी, मानो वसन्त ऋतु में उस पर भाँति-भाँति के फूल गिरे हुए हो । भारत ! शान्तनुनन्दन भीष्म, रथियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा- इनके कुपित होने से पाण्डव सैनिकों का भी इस प्रकार यह संहार हुआ था। साथ ही पाण्डवों के कुपित होने से आपके योद्धाओं का भी ऐसा ही विकट विनाश हुआ था।
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