महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 92 श्लोक 20-43

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द्विनवतितम (92) अध्‍याय: भीष्म पर्व (भीष्‍मवध पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: द्विनवतितम अध्याय: श्लोक 20-43 का हिन्दी अनुवाद

इसे कोई भी प्राणी संग्राम में जीत नहीं सकता, अतः आपका कल्याण हो, वहाँ जाइये और राजा दुर्योधन की रक्षा कीजिये। जान पड़ता है महाभाग दुर्योधन उस महाकाय राक्षस के आक्रमण का शिकार हो रहा है। शत्रुओं को संताप देने वाले वीरों ! आपके तथा हमस ब लोगों के लिये यही सर्वोत्तम कृत्य है। भीष्म की यह बात सुनकर सब महारथी उत्तम वेग का आश्रय ले बड़ी उतावली के साथ उस स्थान पर गये, जहाँ कुरूराज दुर्योधन मौजूद था। द्रोणाचार्य, सोमदत्त, बाहृीक, जयद्रथ, कृपाचार्य, भूरिश्रवा, शल्य, अवन्तीका का राजकुमार, बृहद्वल, अश्वत्थामा, विकर्ण, चित्रसेन, विविंशति तथा उनके अनुयायी अनेक सहस्त्र रथी- ये सब लोग राक्षस के द्वारा आक्रान्त हुए आपके पुत्र दुर्योधन की रक्षा करने के लिए गये। उन महारथियों से पालित होकर वह सेना अजेय हो गई। युद्ध में आततायी दुर्योधन को आते देख राक्षस शिरोमणि महाबाहु घटोत्कच मैनाक पर्वत की भाँति अविचल भाव से खड़ा रहा। उसके जाति-बन्धु हाथों में शूल, मुद्रर आदि नाना प्रकार के अस्त्र-शस्त्र लेकर उसे सब ओर से घेरे हुए थे और उसने एक विशाल धनुष ले रखा था। तदनन्तर राक्षस शिरोमणि घटोत्कच तथा दुर्योधन की सेना में रोमान्चकारी एवं भयंकर युद्ध होने लगा। महाराज ! रणभूमि में सब ओर बाँसों के दग्ध होने के समान धनुषों की टंकार का भयंकर शब्द सुनायी देने लगा। राजन् ! देहधारियों के कवचों पर पड़ने वाले अस्त्रों का ऐसा शब्द होता था, मानो पर्वत विदीर्ण हो रहे हों। प्रजानाथ ! वीरों की भुजाओं से छोड़े गये तोमर जब आकाश में आते, उस समय उनका स्वरूप तीव्रगति से उड़ने वाले सर्पों के समान जान पड़ता था। तदन्तर महाबाहु राक्षस राज घटोत्कच ने अत्यन्त क्रुद्ध हो भैरव गर्जना करते हुए अपने विशाल धनुष को खींचकर अर्धचन्द्राकार बाण से द्रोणाचार्य के धनुष को काट डाला। फिर एक भल्ल के द्वारा सोमदत्त के ध्वज को खण्डित करके सिंहनाथ किया।तत्पश्चात तीन बाणों से बाह्लीक की छाती में गहरी चोट पहुँचायी। एक बाण से कृपाचार्य और तीन से चित्रसेन को भी बींध डाला। इसके बाद उसने धनुष को पूर्णरूप में खींचकर उस पर उत्तम रीति से बाणों का संधान करके विकर्ण के गले की हँसली में गहरी चोट पहुँचायी। इससे विकर्ण अपने रथ से पिछले भाग में व्याकुल होकर बैठ गया, उसका सारा शरीर रक्त से नहा उठा था। भरत श्रेष्ठ ! तत्पश्चात् अमेय आत्मबल से सम्पन्न घटोत्कच ने क्रुद्ध होकर भूरिश्रवा पर पंद्रह नाराच चलाये। वे नाराच उसके कवच को छिन्न-भिन्न करके शीघ्र ही धरती में समा गये। साथ ही घटोत्कच ने विविंशति और अश्वत्थामा के सारथियों पर गहरा आघात किया। वे दोनों घोड़ों की बागडोर छोड़कर रथ की बैठक में गिर पड़े। महाराज ! उसने एक अधचन्द्राकार बाण से सिन्धुराज जयद्रथ की वाराहचिन्‍ह युक्त सुवर्णभूषित ध्वजा काट डाली और दूसरे बाण से उसके धनुष के दो टुकडे़ कर दिये। इसके बाद क्रोध से लाल आँखें करके घटोत्कच ने चार नाराचों द्वारा महामना अवन्ती नरेश के चारों घोड़ों को मार डाला। राजेन्द्र ! तदनन्तर धनुष को पूर्णरूप में खींचकर छोड़े गये पानीदार तीखे बाण से उसने राजकुमार बृहद्वल को विदीर्ण कर दिया। उस बाण से वह गहराई तक बिंध गया और व्यथित होकर रथ के पिछले भाग में जा बैठा। इधर राक्षसराज घटोत्कच अत्यन्त क्रोध से आविष्ट हो रथ पर बैठा रहा। महाराज ! रथ पर बैठे-ही-बैठे उसने विषधर सर्पों के समान अत्यन्त तीखे बाण चलाये। उन बाणों ने युद्ध विशारद राजा शल्य को पूर्ण रूप से घायल कर दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत भीष्मपर्व के अन्तर्गत भीष्मवधपर्व में घटोत्कच युद्धविषयक बानेबवाँ अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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