महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 94 श्लोक 42-50
चतुर्नवतितम (94) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
तब उस माया से डरकर आपके सभी सैनिक युद्ध से विमुख हो गये। उन्होंने एक दूसरे को तथा द्रोण, दुर्योधन, शल्य और अश्वत्थामा को भी इस प्रकार देखा- सब के सब छिन्न-भिन्न हो पृथ्वी पर गिरकर छटपटा रहे हैं और खून से लथपथ होकर दयनीय दशा को पहुँच गये हैं। कौरवों में जो महान धनुर्धर एवं प्रधान वीर है, प्रायः वे सभी रथी विध्वंसकों प्राप्त हो गये है। सब राजा मार गिराये गये है तथा हजारों घोड़े और घुड़सवार टुकडे़-टुकडे़ होकर पड़े है। यह सब देखकर आपकी सेना शिविर की और भाग चली। राजन ! उस समय मैं और देवव्रत भीष्म भी पुकार-पुकार कर कह रहे थे- वीरों ! युद्ध करो। भागों मत। रणभूमि में तुम जो कुछ देख रहे हो, वह घटोत्कच द्वारा छोड़ी हुई राक्षसी माया है। परंतु वे अचेत होने के कारण ठहर न सके। वे इतने डर गये थे कि हम दोनों की बातों पर विश्वास नहीं करते थे। उन्हें भागते देख विजयी पाण्डव घटोत्कच के साथ सिंहनाद करने लगे। चारों ओर शत्रु और दुन्दुभि आदि बाजे जोर-जोर से बजने लगे। इस प्रकार सूर्यास्त के समय दुरात्मा घटोत्कच से खदेड़ी गयी आपकी सारी सेना सम्पूर्ण दिशाओं में भाग गयी।
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