महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 95 श्लोक 65-86
पञ्चनवतितम (95) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
आकाश में प्रकाशित होने वाली अग्नि (वज्र) के समान उस महाशक्ति को गिरती हुई देख राक्षस घटोत्कच ने उछलकर तुरंत ही उसे पकड़ लिया और सिंह के समान गर्जना की। भारत ! फिर उसने तुरंत ही राजा भगदत्त के देखते-देखते उस शक्ति को घुटने पर रखकर तोड़ डाला। यह एक अद्भुत सी बात हुई। महाबली राक्षस के द्वारा किये गये इस महान कर्म को देखकर आकाश में खड़े हुए देवता, गन्धर्व और मुनि बड़े विस्मित हुए। महाराज ! उस समय भीमसेन आदि पाण्डवों ने वाह-वाह करते हुए अपने सिंहनाद से पृथ्वी को गुँजा दिया। हर्ष में भरे हुए उन महामना वीरों का महान सिंहनाद सुनकर महाधनुर्धर एवं प्रतापी राजा भगदत्त न सह सके। उन्होंने इन्द्र के वज्र की भाँति प्रकाशित होने वाले अपने विशाल धनुष को खींचकर पाण्डव महारथियों को वेगपूर्वक डाँट बतायी। तत्पश्चात् अग्नि के समान प्रकाशित होने वाले निर्मल और तीखे नाराचों का प्रहार करते हुए एक के द्वारा भीमसेन को घायल किया और नौ बाणों से राक्षस घटोत्कच को बींध डाला। फिर तीन बाणों से अभिमन्यु को और पाँच से केकय राजकुमारों को घायल किया। तत्पश्चात् धनुष को अच्छी तरह खींचकर छोडे़ हुए झुकी हुई गाँठ वाले बाण के द्वारा उन्होंने युद्ध में क्षत्रदेव की दाहिनी बाँह काट डाली। उसके कटने के साथ ही सहसा उनका बाण सहित उत्तम धनुष पृथ्वी पर गिर पड़ा। इसके बाद भगदत्त ने द्रौपदी के पाँच पुत्रों को पाँच बाणों से घायल कर दिया और क्रोधपूर्वक भीमसेन के घोड़ों को मार डाला। फिर तीन बाणों से उनके सिंहचिह्नित ध्वज को काट दिया और अन्य तीन पंखयुक्त बाण मारकर उनके सारथिको भी विदीर्ण कर डाला। भरतश्रेष्ठ ! भगदत्त के द्वारा युद्ध में अधिक घायल होकर भीमसेन का सारथीविशोक व्यथित हो उठा और रथ के पिछले भाग में चुपचाप बैठ गया। इस प्रकार रथहीन होने पर रथियों में श्रेष्ठ महाबाहू भीमसेन हाथ में गदा लेकर उस उत्तम रथ से वेगपूर्वक कूद पड़े। भारत ! श्रृंगयुक्त पर्वत के समान उन्हें गदा उठाये आते देख आपके सैनिकों के मन में घोर भय समा गया। महाराज ! इसी समय श्रीकृष्ण जिनके सारथीहै, वे पाण्डुनन्दन अर्जुन सब ओर से शत्रुओं का संहार करते हुए वहाँ आ पहुँचे, जहाँ वे दोनों पुरूषसिंह महाबली पिता-पुत्र भीमसेन और घटोत्कच भगदत्त के साथ युद्ध कर रहे थे। भरतश्रेष्ठ ! पाण्डुनन्दन अर्जुन अपने महारथी भाइयों को युद्ध करते देख स्वयं भी बाणों की वर्षा करते हुए तुरंत ही युद्ध में प्रवृत्त हो गये। तब महारथी राजा दुर्योधन ने बड़ी उतावली के साथ रथ, हाथी और घोड़ों से भरी हुई अपनी सेना को शीघ्र ही युद्ध के लिये प्रेरित किया। कौरवों की उस विशालवाहिनी को आती देख श्वेत घोड़ोंवाले पाण्डुपुत्र अर्जुन सहसा बड़े वेग से उसकी ओर दौड़े। भारत ! भगतदत्त ने भी समरभूमि में उस हाथी के द्वारा पाण्डव सेना को कुचलते हुए युधिष्ठर पर धावा किया। आर्य ! उस समय हथियार उठाये हुए पांचालों, पाण्डवों तथा केकयों के साथ भगदत्त का बड़ा भारी युद्ध हुआ। भीमसेन ने भी समरभूमि में श्रीकृष्ण और अर्जुन दोनों को इरावान के वध का यथावत वृत्तान्त अच्छी तरह सुना दिया।
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