महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 98 श्लोक 19-38
अष्टनवतितम (98) अध्याय: भीष्म पर्व (भीष्मवध पर्व)
किंतु पुरूषसिंह ! मैं केवल शिखण्डी को छोड़कर युद्ध में आये हुए समस्त सोमकों और पान्चालों को मार डालूँगा। या तो उन्हीं के हाथों युद्ध में मारा जाकर मैं यमलोक का रास्ता लूँगा अथवा उन्हीं को समराडंगण में मारकर मैं तुम्हे हर्ष प्रदान करूँगा। शिखण्डी पहले राजभवन में स्त्री के रूप में उत्पन्न हुआ था; फिर वरदान से पुरूष हो गया; अतः मेरी दृष्टि में तो यह स्त्रीरूपा शिखण्डिनी है। भारत ! मेरे प्राणों पर संकट आ जाय तो भी मैं उसे नहीं मारूँगा। जिसे विधाता ने पहले स्त्री बनाया था; वह शिखण्डिनी आज भी मेरी दृष्टि में स्त्री ही है। गान्धारीनन्दन ! अब तुम सुख से जाकर सो जाओ। कल मैं बड़ा भीषण युद्ध करूँगा, जिसकी चर्चा लोग तब तक करते रहेंगे, जब तक कि यह पृथ्वी बनी रहेगी। जनेश्वर ! भीष्म के ऐसा कहने पर आपका पुत्र दुर्योधन अपने उन गुरूजन के चरणों में मस्तक रखकर प्रणाम करने के पश्चात अपने शिविर को चला गया। वहाँ आकर शत्रुओं का विनाश करने वाले राजा दुर्योधन ने लोगों के उस महान् समुदाय को तुरंत बिदा कर दिया और स्वयं शिविर के भीतर प्रवेश किया। भूपाल ! वहाँ जाकर राजा ने सुख से रात बितायी और सवेरा होने पर उसने प्रातः काल उठकर राजाओं को यह आज्ञा दी- राजसिंहो ! तुम सब लोग सेना को युद्ध के लिये तैयार करो, आज पितामह भीष्म रणभूमि में कुपित होकर सोमकों का संहार करेंगे। राजन् ! रात में दुर्योधन के अनेक प्रकार के विलाप को सुनकर भीष्म ने यह समझ लिया कि अब दुर्योधन मुझे युद्ध से हटाना चाहता है। इससे उनके मन में बड़ा खेद हुआ। भीष्म ने पराधीनता की भूरि-भूरि निन्दा करके रणभूमि में अर्जुन के साथ युद्ध करने का संकल्प लेकर दीर्घकालतक विचार किया। महाराज ! गडंगानन्दन भीष्म ने क्या सोचा है? इस बात को संकेत से समझकर दुर्योधन ने दुःशासन से कहा- दुःशासन ! तुम शीघ्र ही भीष्म की रक्षा करने वाले रथों को जोतकर तैयार कराओ। अपने पास कुल बाईस सेनाएँ है। उन सब को भीष्म की रक्षा में ही नियुक्त कर दो।
आज वह अवसर प्राप्त हुआ है, जिसके लिये हम बहुत वर्षों से विचार करते आ रहे है। आज सेनासहित समस्त पाण्डवों का वध तथा राज्य का लाभ होगा। इस विषय में भीष्म की रक्षा को ही अपना प्रधान कर्तव्य समझता हूँ। वे सुरक्षित रहने पर हमारे सहायक होंगे और संग्राम भूमि में कुन्ती कुमारों का वध कर सकेंगे। विशुद्ध अन्तःकरण वाले महात्मा भीष्म ने मुझसे कहा है कि राजन् ! मैं शिखण्डी को नहीं मार सकता; क्योंकि वह पहले स्त्री रूप में उत्पन्न हुआ था और इसलिये युद्ध में मुझे उसका परित्याग कर देना है। महाबाहो ! सारा संसार यह जानता है कि मैंने पूर्वकाल में पिता का प्रिय करने की इच्छा से समृद्धिशाली राज्य तथा स्त्रियों का परित्याग कर दिया था। नरश्रेष्ठ ! मैं कभी किसी स्त्री को अथवा जो पहले स्त्री रहा हो, उस पुरूष को भी किसी प्रकार युद्ध में मार नहीं सकता; यह मैं तुमसे सत्य कहता हूँ। राजन् ! तुमने भी सुना होगा, यह शिखण्डी पहले स्त्री रूप में पैदा हुआ था। यह बात मैंने तुमसे युद्ध की तैयारी के समय बता दी थी। इस प्रकार कन्यारूप में उत्पन्न हुई शिखण्डनी पहले स्त्री होकर अब पुरूष हो गयी है। वह पुरूष बना हुआ शिखण्डी यदि मुझसे युद्ध करेगा तो मैं उसके ऊपर किसी प्रकार भी बाण नहीं चलाऊँगा।
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