महाभारत मौसल पर्व अध्याय 1 श्लोक 17-31
प्रथम (1) अध्याय: मौसल पर्व
‘महर्षियों ! यह स्त्री अमित तेजस्वी बभ्रु की पत्नी है। बभ्रु के मन में पुत्र की बड़ी लालसा है। आप लोग ऋषि हैं; अतः अच्छी तरह सोचकर बतावें, इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा? राजन् ! नरेश्वर ! ऐसी बात कहकर उन यादवों ने जब ऋषियों को धोखा दिया और इस प्रकार उनका तिरस्कार किया तब उन्होंने उन बालकों को जो उत्तर दिया, उसे सुनो। राजन् ! उन दुर्बुद्धि बालकों के वञ्चनापूर्ण बर्ताव से वे सभी महर्षि कुपित हो उठे। क्रोध से उनकी आँखें लाल हो गयीं और वे एक-दूसरे की ओर देखकर इस प्रकार बोले- ‘क्रूर, क्रोधी और दुराचारी यादव कुमारों! भगवान श्रीकृष्ण का यह पुत्र साम्ब एक भयंकर लोहे का मूसल उत्पन्न करेगा जो वृष्णि और अन्धकवंश के विनाश का कारण होगा। उसी से तुम लोग बलराम और श्रीकृष्ण के सिवा अपने शेष समस्त कुल का संहार कर डालोगे। हलधारी श्रीमान बलराम जी स्वयं ही अपने शरीर का त्याग कर समुद्र में चले जायेंगे और महात्मा श्रीकृष्ण जब भूतल पर सो रहे होंगे उस समय जरा नामक व्याध उन्हें अपने बाणों से बींध डालेगा।'
ऐसा कहकर वे मुनि भगवान श्रीकृष्ण के पास चले गये। (वहाँ उन्होंने उनसे सारी बातें कह सुनायीं।) यह सब सुनकर भगवान मधुसूदन ने वृष्णिवंशियों से कहा- ‘ऋषियों ने जैसा कहा है, वैसा ही होगा।’ बुद्धिमान श्रीकृष्ण सबके अन्त को जानने वाले हैं। उन्होंने उपर्युक्त बात कहकर नगर में प्रवेश किया। यद्यपि भगवान श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत के ईश्वर हैं तथापि यदुवंशियों पर आने वाले उस काल को उन्होंने पलटने की इच्छा नहीं की। दूसरे दिन सवेरा होते ही साम्ब ने उस मूसल को जन्म दिया। यह वही मूसल था जिसने वृष्णि और अन्धक कुल के समस्त पुरूषों को भस्मसात कर दिया। वृष्णि और अन्धक वंश के वीरों का विनाश करने के लिये वह महान यमदूत के ही तुल्य था। जब साम्ब ने उस शापजनित भयंकर मूसल को पैदा किया तब यदुवंशियों ने उसे ले जाकर राजा उग्रसेन को दे दिया। उसे देखते ही राजा के मन में विषाद छा गया। उन्होंने उस मूसल को कुटवाकर अत्यन्त महीन चूर्ण करा दिया। नरेश्वर ! राजा की आज्ञा से उनके सेवकों ने उस लोहचूर्ण को समुद्र में फेंक दिया।
फिर उग्रसेन, श्रीकृष्ण, बलराम और महामना बभ्रु के आदेश से राजपुरूषों ने नगर में यह घोषणा करा दी कि 'आज से समस्त वृष्णिवंशी और अन्धकवंशी क्षत्रियों के यहाँ कोई भी नगर निवासी मदिरा न तैयार करें। जो मनुष्य कहीं भी हम लोगों से छिपकर कोई नशीली पीने की वस्तु तैयार करेगा वह स्वयं वह अपराध करके जीते जी अपने भाई-बन्धुओं सहित शूली पर चढ़ा दिया जायगा।' अनायास ही महान कर्म करने वाले बलराम जी का यह शासन समझकर सब लोगों ने राजा के भय से यह नियम बना लिया कि ‘आज से न तो मदिरा बनाना है न पीना।'
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