महाभारत मौसल पर्व अध्याय 3 श्लोक 36-47
तृतीय (3) अध्याय: मौसल पर्व
उनके हाथ में आते ही वह घास वज्र के समान भयंकर लोहे का मूसल बन गयी। फिर तो जो-जो सामने आये उन सब को श्रीकृष्ण ने उसी से मार गिराया। उस समय काल से प्रेरित हुए अन्धक, भोज, शिनि और वृष्णि वंश के लोगों ने उस भीषण मार काट में उन्हीं मूसलों से एक-दूसरे को मारना आरम्भ किया। नरेश्वर ! उनमें से जो कोई भी क्रोध में आकर एरका नामक घास लेता, उसी के हाथ में वह वज्र के समान दिखायी देने लगती थी। पृथ्वीनाथ ! एक साधारण तिनका भी मूसल होकर दिखायी देता था; यह सब ब्राह्मणों के शाप का ही प्रभाव समझो। राजन् ! वे जिस किसी भी तृण का प्रहार करते वह अभेद्य वस्तु का भी भेदन कर डालता था और वज्रमय मूसल के समान सुदृढ़ दिखायी देता था। भरत नन्दन ! उस मूसल से पिता ने पुत्र और पुत्र ने पिता को मार डाला। जैसे पतंगे आग में कूद पड़ते हैं, उसी प्रकार कुकुर और अन्धक वंश के लोग परस्पर जूझते हुए एक दूसरे पर मतवाले होकर टूटते थे। वहाँ मारे जाने वाले किसी योद्धा के मन में वहाँ से भाग जाने का विचार नहीं होता था। काल चक्र के इस परिवर्तन को जानते हुए महाबाहु मधुसूदन वहाँ चुपचाप सब कुछ देखते रहे और मूसल का सहारा लेकर खड़े रहे। भारत! श्रीकृष्ण ने जब अपने पुत्र साम्ब, चारूदेष्ण और प्रद्युम्न को तथा पोते अनिरूद्ध को भी मारा गया देखा तब उनकी क्रोधाग्नि प्रज्वलित हो उठी। अपने छोटे भाई गद को रणशैय्या पर पड़ा देख वे अत्यन्त रोष से आगबबूला हो उठे; फिर तो शार्गं धनुष, चक्र और गदा धारण करने वाले श्रीकृष्ण ने उस समय शेष बचे हुए समस्त यादवों का संहार कर डाला। शत्रुओं की नगरी पर विजय पाने वाले महातेजस्वी बभ्रु और दारूक ने उस समय यादवों का संहार करते हुए श्रीकृष्ण से जो कुछ कहा, उसे सुनो। ‘भगवान! अब सबका विनाश हो गया। इनमें से अधिकांश तो आप के हाथों मारे गये हैं। अब बलराम जी का पता लगाइये। अब हम तीनों उधर ही चलें, जिधर बलराम जी गये हैं।'
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