महाभारत मौसल पर्व अध्याय 8 श्लोक 28-38
अष्टम (8) अध्याय: मौसल पर्व
(तुम्हारे देखते-देखते स्त्रियों का जो अपहरण हुआ है, उसमें भी देवताओं का एक रहस्य है । ) वे स्त्रियाँ पूर्वजन्म में अप्सराएँ थीं । उन्होंने अष्टावक्र मुनि के रूप का उपहास किया था । मुनि ने शाप दिया था (कि ‘तुम लोग मानवी हो जाओ और दस्युओं के हाथ में पड़ने पर तुम्हारा इस शाप से उद्धर होगा ।) इसीलिये तुम्हारे बल का क्षय हुआ (जिससे वे डाकुओं के हाथ में पड़कर उस शाप से छुटकारा पा जायँ ), (अब वे अपना पूर्वरूप और स्थान पा चुकी हैं, अत: उनके लिये भी शोक करने की आवश्यकता नहीं है ।) ।जो स्नेहवश तुम्हारे रथ के आगे चलते थे (सारथि का काम करते थे), वे वासुदेव कोई साधारण पुरूष नहीं, साक्षात चक्र-गदाधारी पुरातन ॠषि चतुर्भुज नारायण थे ।वे विशाल नेत्रों वाले श्रीकृष्ण इस पृथ्वी का भार उतारकर शरीर तयाग अपने उत्तम धाम को जा पहुँचे हैं ।पुरूषप्रवर ! महाबाहो ! तुमने भी भीमसेन और नकुल-सहदेव की सहायता से देवताओं का महान कार्य सिद्ध किया है ।कुरूश्रेष्ठ ! मैं समझता हूँ कि अब तुमलोगों ने अपना कर्तव्य पूर्ण कर लिया है । तुम्हें सब प्रकार से सफलता प्राप्त हो चुकी है । प्रभो ! अब तुम्हारे परलोकगमन का समय आया है और यही तुम लोगों के लिये श्रेयस्कर है ।भरतनन्दन ! जब उद्भव का समय आता है तब इसी प्रकार मनुष्य की बुद्धि, तेज और ज्ञान का विकास होता है और जब विपरीत समय उपस्थित होता है तब इन सबका नाश हो जाता है ।धनंजय ! काल ही इन सबकी जड़ है । संसार की उत्पत्ति का बीज भी काल ही है और काल ही फिर अकस्मात सबका संहार कर देता है । वही बलवान होकर फिर दुर्बल हो जाता है और वही एक समय दूसरों का शासक होकर कालान्तर में स्वयं दूसरों का आज्ञापालक हो जाता है ।तुम्हारे अस्त्र-शस्त्रों का प्रयोजन भी पूरा हो गया है; इसलिये वे जैसे मिले थे वैसे ही चले गये । जब उपयुक्त समय होगा तब वे फिर तुम्हारे हाथ में आयेंगे ।भारत ! अब तुम लोगों के उत्तम गति प्राप्त करने का समय उपस्थित है । भरतश्रेष्ठ ! मुझे इसी में तुम लोगों का परम कल्याण जान पड़ता है ।वैशम्पायन जी कहते हैं –जनमेजय ! अमित तेजस्वी व्यास जी के इस वचन का तत्त्व समझकर अर्जुन उनकी आज्ञा ले हस्तिनापुर को चले गये ।नगर में प्रवेश करके वीर अर्जुन युधिष्ठिर से मिले और वृष्णि तथा अन्धकवंश का यथावत समाचार उन्होंने कह सुनाया ।