महाभारत वन पर्व अध्याय 123 श्लोक 1-15

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त्रयोविंशत्‍यधि‍कशततम (123) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )

महाभारत: वन पर्व: त्रयोविंशत्‍यधि‍कशततम अध्‍याय: श्लोक 1-15 का हिन्दी अनुवाद

अश्‍वि‍‍नीकुमरों की कृपा से महर्षि‍ च्‍यवन को सुन्‍दर रूप और युवावस्‍था की प्राप्‍ति

लोमशजी कहते है- युधि‍ष्‍ठि‍र ! तदनन्‍तर कुछ काले के बाद जब एक समय सुकन्‍या स्‍नान की चु‍की थी, उस समय उसके सब अंग ढके हुए नहीं थे। इसी अवस्‍था में दोनों अश्‍वि‍नीकुमार देवताओं ने उसे देखा। साक्षात देवराज इन्‍द्र की पुत्री समान दर्शनीय अंगोवाली उस राजकन्‍या को देखकर नासत्‍यसंज्ञक अश्‍वि‍नीकुमारों ने उसके पास जा यह बात कही। ‘वामोरू ! तुम कि‍सकी पुत्री और कि‍सकी पत्‍नी हो इस वन में क्‍या करती हो ! मद्रे ! हम तुम्‍हारा परि‍चय प्राप्‍त करना चाहते हैं । शोभने ! तुम बातें ठीक ठीक बताओं । तब सुकन्‍या ने लज्‍जि‍त होकर उन दोनों श्रेष्‍ठ देवताओं से कहा- ‘देवेश्‍वरों ! आपको वि‍दीत होना चाहि‍ए कि‍ में राजा शर्याति‍ की पुत्री और महर्षि‍ च्‍यवन की पत्‍नी हूं । ‘मेरा नाम इस जगत में सुकन्‍या प्रसि‍द्ध है । मैं सम्‍पूर्ण हृदय से सदा अपने पति‍देव के प्रति‍ नि‍ष्‍ठा रखती हूं ।‘ यह सुनकर अश्‍वि‍‍नीकुमारों ने पुन: हंसते हुए कहा- ‘कल्‍याणि‍ ! तुम्‍हारे पि‍ताने इस अत्‍यन्‍त बूढ़े पुरूष के साथ तुम्‍हारा वि‍वाह कैसे कर दि‍या भीरू ! इस वन में तुम वि‍द्युत की भांति‍ प्रकाशि‍त हो रही हो । भामि‍ने ! देवताओं के यहां भी तुम जैसी सुन्‍दरी को हम नहीं देख पाते हैं । भद्रे ! तुम्‍हारे अंगो पर आभूषण नहीं है । तुम उत्‍तम वस्‍त्रों से भी वंचि‍त हो और तुमने कोई श्रृंगार भी नहीं धारण कि‍या है तों भी इस वन की अधि‍काधि‍क शोभा बढ़ा रही हो । ‘र्नि‍दोष अंगोवाली सुन्‍दरी ! यदि‍ तुम समस्‍त भूषणों से भूषि‍त हो जाओ और अच्‍छे-अच्‍छे वस्‍त्र पहन लो, तो उस समय तुम्‍हारी जो शोभा होगी, वैसी इस मल और पकं से युक्‍त मलि‍न वेश में नहीं हो रही हैा । ’कल्‍याणि‍ ! तुम ऐसी अनुपत सुन्‍दरी होकर काम भोग से शून्‍य इस जरा जर्जर बूढ़े पति‍ की उपासना कैसे करती हो । ‘पवि‍त्र मुस्‍कान वाली देवी ! वह बूढ़ा तो तुम्‍हारी रक्षा और पालन पोषण में भी समर्थ नहीं है । अत: तुम च्‍यवन को छोड़कर हम दोनों मे कि‍सी एक को अपना पति‍ चुन लो । ‘देवकन्‍या के समान सुन्‍दरी राजकुमारी ! बूढ़े पति‍ के लि‍ये अपनी इस जवानी को व्‍यर्थ न गंवाओं ।‘ उनके ऐसा कहने पर सुकन्‍या ने उन दोनों देवताओं से कहा - देवेश्‍वरो ! मैं अपने पति‍देव च्‍यवन मुनि‍ में ही पूर्ण अनुराग रखती हूं, अत: आप मेरे वि‍षय में इस प्रकार की अनुचि‍त आंशका न करें ।‘ तब उन दोनो ने पुन: सुकन्‍या से कहा- ‘शुभे ! हम देवताओं के श्रेष्‍ठ वैद्य है । तुम्‍होर पति‍ को तरूण और मनोहर रूप में सम्‍पन्‍न बना देगें । तब तुम इस तीनों मे से कि‍सी एक को अपना पति‍ बना लेना । इस शर्त के साथ तुम चाहो तो अपने पति‍ को यहां बुला लो’ । राजन ! उन दोनो की यह बात सुनकर सुकन्‍या च्‍यवन मुनि‍ के पास गयी और अश्‍वि‍नीकुमारों ने जो कहा था, वह सब उन्‍हें कह सुनाया । यह सुनकर च्‍यवन ने अपनी पत्‍नी से कहा- ‘प्रि‍य ! देववैद्यो ने जैसा कहा है, वैसा करो’ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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