महाभारत वन पर्व अध्याय 130 श्लोक 20-24
त्रिंशदधिकशततम (130) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रापर्व )
राजेन्द्र ! वितस्ता (झेलम नदी का दर्शन करो, जो सब पापों से मुक्त करने वाली है । इसका जल बहुत शीतल और अत्यन्त निर्मल है। इसके तट पर बहुत से महर्षिगण निवास करते है । यमुना नदी के दोनों पार्श्व में जला और उपजला नाम की दो नदियों का दर्शन करो, जहां राजा दशीनर ने यज्ञ करके इन्द्र से भी उंचा स्थान प्राप्त किया था । महाराज भरतनन्दन ! नृपश्रेष्ट उशीनर के महत्व को समझने के लिये किसी समय इन्द्र और अग्नि उनकी राजसभा में गये । वे दोनों वरदायक महात्मा उस समय उशीनर की परीक्षा लेना चाहते थे; अत: इन्द्र ने बाज पक्षी का रुप धारण किया और अग्नि ने कबूतर का। इस प्रकार वे राजा के यज्ञमण्डप में गये । अपनी रक्षा के लिये आश्रय चाहने वाला कबूतर बाज के भय से डरकर राजा की गोदी में जा छिपा ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वन पर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा पर्व में लोमश तीर्थ यात्रा के प्रसंग में श्येनकपोतीपाख्यान विषयक एक सौ तीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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