महाभारत वन पर्व अध्याय 146 श्लोक 39-63
षट्चत्वारिंशदधिकशततम (146) अध्याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)
वे बिजलियोंसे सुशोभित मेघकी भांति बड़े जोरसे गर्जना करने लगे। भीमसेनकी उस भयंकर गर्जनासे जगे हुए व्याघ्र अपनी गुफा छोड़कर भाग गये, वनवासी प्राणी वनमें ही छिप गये, ड़रे हुए आकाशमें उड़ गये और मृगोंके झुंड़ दूरतक भागते चले गये। रीछोंने वृक्षोंका आश्रय छोड़ दिया, सिंहोंन गुफाएं त्याग दीं, बड़े-बड़े सिंह जंमाई लेने लगे और जंगली भैसे दूरसे ही उनकी ओर देखने लगे। भीमसेन की उस गर्जना से डरे हुए हाथी उस वनको छोड़कर हथिनियों से घिरे दूसरे विशाल वन में चले गये। सूअर, मृगसमूह, जंगल भैंसे, बाघों तथा गीदड़ों के समुदाय और गवय-ये सब-के-सब एक साथ चीत्कार करने लगे। चक्रवाक, चातक, हंस, कारण्डव, प्लव, कोकिल और कौआ आदि पक्षियोंने अचेत होकर भिन्न-भिन्न दिशाओं की शरण ली। तथा हथिनियोंके कटाक्ष-बाणसे पीडि़त हुए दूसरे बलोन्मत गजराज, सिंह और व्याघ्र क्रोधमे भरकर भीमसेनपर टूट पड़े। वे मल-मूत्र छोड़ते हुए मन-ही-मन भयसे घबरा रहे थे और मुंह बाये हुए अत्यन्त भयानक रूपसे भैरव-गर्जना कर रहे थे। तब अपने बाहु-बलका भरोसा रखनेवाले श्रीमान् वायुपुत्र भीमने कुपित हो एक हाथी से दूसरे हाथियोंको और एक सिंहसे दूसरे सिंहोंको मार भगाया तथा उन महाबली पाण्डुकुमारने कितनोंको तमाचोंके प्रहारके मार ड़ाला। भीमसेनकी मार खाकर सिंह, व्याघ्र और चीते बघेरे भयसे उन्हें छोड़कर भाग चले तथा घबराकर मल-मूत्र करने लगे। तदनन्तर महान् शक्तिशाली पाण्डुनन्दन भीमसेनने शीघ्र उन सबको छोड़कर अपनी गर्जनासे सम्पूर्ण दिशाओंको गुंजाते हुए एक वनमें प्रवेश किया। इसी समय गन्धमादनके शिखरोंपर महाबाहु भीमने एक परम सुन्दर केलेका बगीचा देखा, जो कई योजन दूरतक फैला हुआ था। मदकी धारा बहानेवाले महाबली गजराजकी भांति उस कदलीवनमें हलचल मचाते और भांति-भांतिके वृक्षोंको तोड़ते हुए वे बड़े वेगसे वहां गये। वहां के केलेके वृक्ष खम्भोंके समान मोटे थे। उनकी उंचाई कई ताड़ोंके बराबर थी। बलवानोंमें श्रेष्ठ भीमने बड़े वेगसे उन्हें उखाड़-उखाड़कर सब ओर फेंकना आरम्भ किया। वे महान् तेजस्वी तो थे ही, अपने बल और पराक्रमपर गर्व भी रखते थे; अतः भगवान् नृसिंहकी भांति विकट गर्जना करने लगे। तत्पश्चात् और भी बहुतसे बड़े-बड़े जन्तुओंपर आक्रमण किया। रूरू, वानर, सिंह, भैंसे तथा जल-जन्तुओं पर भी धावा किया। उन पशु-पक्षियोंके एवं भीमसेनके उस भयंकर शब्दसे दूसरे वनमें रहनेवाले मृग और पक्षी भी थर्रा उठे। मृगों और पक्षियोंके उस भयसूचक शब्दको सहसा सुनकर सहस्त्रों पक्षी आकाशमें उड़ने लगे। उन सबकी पांखे जलसे भीगी हुई थीं। भरतश्रेष्ठ भीमने यह देखकर कि ये तो जलके पक्षी हैं, उन्हींके पीछे चलने लगे और आगे जानेपर एक अत्यन्त रमणीय विशाल सरोवर देखा। उसे सरोवरके एक तीरसे लेकर दूसरे तीरतक फैले हुए सुवर्णमय केलेके वृक्ष मन्द वायुसे विकम्पित होकर मानो उस अगाध जलाशयको पंखा झल रहे थे। उसमें प्रचुर कमल और उत्पल खिले हुए थे। बन्धनरहित महान् गजके समान बलवानोंमें श्रेष्ठ भीमसेन सहसा उस सरोवरमें उतरकर जल-कीड़ा करने लगे। दीर्घ कालतक उस सरोवरमें क्रीड़ा करनेके असंख्य वृक्षोंसे सुशोभित उस कदलीवनमें वेगपूर्वक जानेको उद्यत हुए। उस समय बलवान् पाण्डुनन्दन भीमने अपनी सारीशक्ति लगाकर बड़े जोर से शंक बजाया और सम्पूर्ण दिशाओं को प्रतिध्वनित करते हुए ताल ठोंका। उस शंकाकी ध्वनि; भीमसेनकी गर्जना और उनके ताल ठोंकनेके भयंकर शब्दसे मानो पर्वतोंकी कन्दाएं गूंज उठीं। पर्वतोंपर वज्रपात होनेके समान उस ताल ठोंकनेके भयानक शब्दको सुनकर गुफाओंमें सोये हुए सिंहोंने भी जोर-जोरसे दहाड़ना आरम्भ किया।
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