महाभारत वन पर्व अध्याय 160 श्लोक 49-77

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षष्‍टयधिकशततम (160) अध्‍याय: वन पर्व (यक्षयुद्ध पर्व)

महाभारत: वन पर्व: षष्‍टयधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 49-77 का हिन्दी अनुवाद

। भारत! तदनन्तर उन यक्षों और गन्धर्वोंका भीमसेनके साथ युद्ध प्रारम्भ हो गया। वे यक्ष और राक्षस बड़े मायावी थे। उनके चलाये हुए शूल, शक्ति और फरसोंको भीमसेनने भयानक वेगशाली मल्ल नामक बाणोंद्वारा काट गिराया। वे राक्षस आकाशमें उड़कर तथा भूतलपर खड़े होकर जोर-जोरसे गर्जना कर रहे थे। महाबली भीमने बाणोंकी झड़ी लगाकर उनके शरीरोंको अच्छी प्रकार छेद डाला। गदा और परिघ हाथमें लिये हुए राक्षसोंके शरीरसे महाबली भीमपर खूनकी बड़ी भारी वर्षा होने लगी तथा चारों ओर राक्षसोंके शरीरसे रक्तकी कितनी ही धाराएं बह चलीं। भीमके बाहुबलसे छूटे हुए अस्त्र-शस्त्रोंद्वारा यक्षों तथा राक्षसोंके शरीर और सिर कटे दिखायी दे रहे थे। जैसे बादल सूर्यको ढक लेते हैं, उसी प्रकार प्रियदर्शन पाण्डुपुत्र भीमको राक्षस ढके लेते हैं, यह सब प्राणियोंने प्रत्यक्ष देखा। तब सत्यपराक्रमी बलवान् महाबाहु भीमसेनने अपने शत्रुनाशक बाणोंद्वारा समस्त शत्रुओंको उसी प्रकार ढक लिया, जैसे सूर्य अपनी किरणोंसे संसार को ढक लेते हैं। सब ओर से गर्जन-तर्जन करते हुए तथा बड़ी भयानक आवाजसे चिग्घाड़ते हुए सब राक्षसोंने भीमसेनके चितमें तनिक भी घबराहट नहीं देखी। जिनके सारे अंग विकृत एवं विकराल थे, वे यक्ष भीमसेनके भयसे पीडि़त हो अपने बड़े-बड़े आयुधोंको इधर-उधर फेंककर भयंकर आर्तनाद करने लगे। सुदृढ धनुषवाले भीमसेनसे आतंकित हो वे यक्ष-राक्षस आदि योद्धा गदा, शूल, खंग, शक्ति तथा परशु आदि अस्त्रोंको वहीं छोड़कर दक्षिण दिशाकी ओर भाग गये। वहां कुबेरके सखा राक्षसप्रवर मणिमान् भी मौजूद थे। उनके हाथोंमें त्रिशुल और गदा शोभा पा रही थी। उनकी छाती चौड़ी और बांहें विशाल थीं। उन महाबली वीरने वहां अपने अधिकार और पौरूष दोनोंको प्रकट किया। उस समय अपने सैनिकोको रणसे विमुख होते देख वे मुस्कराते हुए उनसे बोले- 'अरे! तुम बहुत बड़ी संख्यामें होकर भी आज एक मनुष्यद्वारा युद्धमें पराजित हो गये। कुबेर-भवनमें धनाध्यक्ष पास जाकर क्या कहोगे ?' ऐसा कहकर राक्षस मणिमान्ने उन सबको लौटाया और हाथोंमें शक्ति, शूल तथा गदा लेकर भीमसेनपर धावा किया। मदकी धारा बहानेवाले गजराजकी भांति मणिमान् को बड़े वेगसे देख भीमसेनने वत्सनन्दन नामक तीन बाणोंद्वारा उनकी पसलीमें प्रहार किया। यह देख महाबली मणिमान् भी रोषसे आगबबूला हो उठे और बहुत बड़ी गदा लेकर उन्होंने भीमसेनपर चलायी। वह विशाल एवं महा भयंकर गदा आकाशमें विद्युतकी भांति चमक उठी। यह देख भीमसेनने पत्थरपर रगड़कर तेज किये हुए बहुत-से बाणोंद्वारा उसपर आघात किया। परंतु वे सभी बाण मणिमान्की गदासे टकराकर नष्ट हो गये। यद्यपि वे बड़े वेगसे छूटे थें, तथापि गदा चलानेके अभ्यासी मणिमान्की गदाके वेगको न सह सके। भयंकर पराक्रमी महाबली भीमसेन गदायुद्धकी कलाको जानते थे। अतः उन्होंने शत्रुको उस प्रहारके व्यर्थ कर दिया। तदनन्तर बुद्धिमान् राक्षसने उसी समय स्वर्णमय दण्डसे विभूषित एवं लोहेकी बनी हुई बड़ी भयानक शक्तिका प्रहार किया। वह अग्रिकी ज्वालाकी समान अत्यन्त भयंकर शक्ति भयानक गड़गड़ाहट के साथ भीमकी दाहिनी भुजाको छेदकर सहसा पृथ्वीपर गिर पड़ी। शक्तिकी गहरी चोट लगनेसे महान् धनुर्धर एवं अत्यन्त पराक्रमी कुन्तीकुमार भीमके नेत्र क्रोधसे व्याकुल हो उठे और उन्होंने एक ऐसी गदा हाथमें ली, जो शत्रुओंका भय बढ़ानेवाली थी। उसके उपर सोनके पत्र जड़े थे। वह सारी-की-सारी लोहेकी बनी हुई और शत्रुओंको नष्ट करनेमें समर्थ थी। उसे लेकर भीमसेन विकट गर्जना करते हुए बड़े वेगसे महाबली मणिमान् की ओर दौड़े। उधर मणिमान्ने भी सिंहनाद करते हुए एक चमचमाता हुआ महान् त्रिशुल हाथमें लिया और बड़े वेगसे भीमसेनपर चलाया। परंतु गदा-युद्धमें कुशल भीमने गदाके अग्रभागसे उस त्रिशुलके टुकड़े-टुकड़े करके मणिमान्को मारनेके लिये उसी प्रकार धावा किया, जैसे किसी सर्पके प्राण लेने के लिये गरूड़ उसपर टूट पड़ते हैं। महाबाहु भीमने युद्धके मुहानेपर गर्जना करते हुए सहसा आकाशमें उछलकर गदा घुमायी और उसे वायुके समान वेगसे मणिमान्पर दे मारा, मानो देवराज इन्द्र ने किसी दैत्यपर वज्रका प्रहार किया हो। वह गदा उस राक्षसके प्राण लेकर भूमिपर मूर्तिमती कृत्याके समान गिर पड़ी। भीमसेनके द्वारा मारे गये। उस भयानक शक्तिशाली राक्षसको सब प्राणियोंने प्रत्यक्ष देखा, मानो सिंहने किसी सांड़को मार गिराया हो। उसे मरकर पृथ्वीपर गिरा देख मरनेसे बचे हुए निशाचर भयंकर आर्तनाद करते हुए पूर्व दिशाकी ओर भाग चले।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत यक्षयुद्ध पर्व में मणिमान्वधसे सम्बन्ध रखनेवाला एक सौ साठवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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