महाभारत वन पर्व अध्याय 186 श्लोक 1-12

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षडशीत्यधिकशततम (186) अध्‍याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)

महाभारत: वन पर्व: षडशीत्यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 1-12 का हिन्दी अनुवाद

तार्क्ष्‍यमुनि और सरस्वती संवाद

मार्कण्डेयजी कहते हैं-शत्रुओं की राजधानीपर विजय पानेवाले पाण्डुनन्दन! इसी विषयमें परम बुद्धिमान् तार्क्ष्‍य मुनिने सरस्वतीदेवीसे कुछ प्रश्न किया था, उसके उत्तरमें सरस्वतीदेवीने जो कुछ कहा था, वह तुम्हें सुनाता हूं, सुनो। तार्क्ष्‍यने पूछा-भद्रे! इस संसारमें मनुष्यका कल्याण करनेवाली वस्तु क्या हैं ? किस प्रकार आचरण करनेवाला पुरूष अपने धर्मसे भ्रष्ट नहीं होता हैं ? सर्वांग-सुन्दरी देवि! तुम मुझसे इसका वर्णन करो। मैं तुम्हारी आज्ञाका पालन करूंगा। मुझे विश्वास है कि तुमसे उपदेश ग्रहण करके मैं अपने धर्मसे गिर नहीं सकता। मैं कैसे और किस समय अग्निमें हवन अथवा उसका पूजन करूं ? क्या करनेसे धर्मका नाश नहीं होता है ? सुभगे! तुम सारी बातें मुझसे बताओ। जिससे मैं रजोगुणरहित होकर सम्पूर्ण लोकोंमें विचरण करूं। मार्कण्डेयजी कहते हैं-राजन्! उनके इस प्रकार प्रेमपूर्वक पूछनेपर सरस्वतीदेवीने ब्रह्मर्षि तार्क्ष्‍यको धर्मात्मा, उत्तम बुद्धिसे युक्त एवं श्रवणके लिये उत्सुक देखकर उनसे यह हितकर वचन कहा। सरस्वती बोली-मुने! जो प्रमाद छोड़कर पवित्र भावसे नित्य स्वाध्याय करता हैं और अर्चि आदि मार्गोंसे प्राप्त होने योग्य सगुण ब्रहमा को जान लेता हैं, वह देवलोकसे उठकर ब्रह्मलोकमें जाता है और देवताओं साथ प्रेमसम्बन्ध स्थापित कर लेता है। वहां सुन्दर, विशाल, शोकरहित, अत्यन्त पवित्र तथा सुन्दर पुष्पोंसे सुशोभित छोटे-छोटे सरोवर हैं। उनमें कीचड़का नाम नहीं है। उनमें मछलियां निवास करती है। उन सरोवरोंमें उतरनेके लिये मनोहर सीढि़यां बनी हुई है। और वे सभी सरोवर सुवर्णमय कमल-पुष्पोंसे आच्छादित रहते हैं। उनके तटोंपर पूजनीय पुण्यात्मा पुरूष पृथक्-पृथक् अप्सराओंके साथ सानन्द प्रतिष्ठित होते हैं। वे अप्सराएं अत्यन्त पवित्र सुगन्धसे सुवासित, विविध आभूषणोंसे विभूषित तथा स्वर्णकी-सी कान्तिसे प्रकाशित होती हैं। गोदान करनेवाले मनुष्य उत्तम लोकमें जाते हैं। छकड़े ढ़ोनेवाले बलवान् बैलोंका दान करनेसे दाताओंको सूर्यलोककी प्राप्ति होती है। वस्त्रादानसे चन्द्रलोक और सुवर्णदानसे अमरत्वकी प्राप्ति होती हैं। जो अच्छे रंगकी हो, सुगमतासे दूध दुहा लेती हो, सुन्दर बछड़े देनेवाली हो और बन्धन तुड़ावर भागनेवाली न हो, ऐसी गौका जो लोग दान करते हैं, वे गौके शरीरमें जितने रोएं हों, उतने वर्षतक देवलोकमें निवास करते हैं। जो मनुष्य अच्छे स्वभाववाले, अत्यन्त शक्तिशाली, हल खींचनेवाले, गाड़ीका बोझ ढोनेमें समर्थ, बलवान् और तरूण अवस्थावाले बैलका दान करता है, वह धेनूदान करनेवाले पुरूषसे दसगुने पुण्यलोक प्राप्त करता हैं। जो कांसेकी दोहनी, वस्त्र, उत्तर कालिक दक्षिणाद्रव्यके साथ कपिला गौका दान करता हैं, उसकी दी हुई वह गौ उन-उन गुणोंके साथ कामधुनू बनकर परलोकमें दाताके पास पहुंच जाती हैं। उस धेनुके शरीरमें जितने रोएं होते हैं, उतने वर्षोंतक दाता गोदानके पुण्यफलका उपभोग करता हैं। साथ ही गौ परलोकमें दाताके पुत्रों, पौत्रों एवं सात पीढ़ीतकके समूचे कुलका उद्धार करती हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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