महाभारत वन पर्व अध्याय 192 श्लोक 1-20
द्विनवत्यधिकशततम (192) अध्याय: वन पर्व (मार्कण्डेयसमस्या पर्व)
इक्ष्वाकुवंशी परीक्षितका मण्डूकराजकी कन्यासे विवाह, शल और दलके चरित्र तथा वामदेव मुनिकी महत्ता
वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय! तदनन्तर पाण्डुनन्दन युधिष्ठिरने मुनिवर मार्कण्डेयसे कहा-'ब्रह्मन्! पुनः ब्राह्माणोंकी महिमाका वर्णन कीजिये'। तब मार्कण्डेयजीने कहा-'राजन्! ब्राह्माणोंके इस अद्भूत चरित्रका श्रवण करो। 'अयोध्यापुरीमें इक्ष्वाकुकुलमें धुरंधर वीर राजा परीक्षित् रहते थे। वे एक दिन शिकार खेलनेके लिये गये। 'उन्होंने एकमात्र अश्वकी सहायतासे एक हिंसक पशुकाप पीछा किया। वह पशु उन्हें बहुत दूर हटा ले गया। 'मार्गमें उन्हें बड़ी थकावट हुई और वे भूख-प्याससे व्याकुल हो गये। उसी समय उन्हें एक ओर नीले रंगका एक दूसरा वन दिखायी दिया, जो और भी घना था। 'तत्पश्चात् राजाने उसके भीतर प्रवेश किया। उस वनस्थलीके मध्यभागमें एक अत्यन्त रमणीय सरोवर था। उसे देखकर राजा घोडे़सहित सरोवरके जलमें घुस गये। 'जल पीकर जब वे कुछ आश्वस्त हुए, तब घोड़ेके आगे कुछ कमलकी नालें डालकर स्वयं उस सरोवरके तटपर लेट गये। लेटे-ही-लेटे उनके कानोंमें कहींसे मधुर गीतकी ध्वनि सुनायी पड़ी। 'उसे सुनकर राजा सोचने लगे कि 'यहां मनुष्योंकी गति तो नहीं दिखायी देती। फिर यह किसके गीतका शब्द सुनायी देता हैं'। 'इतनेही में उनकी दृष्टि एक कन्यापर पड़ी, जो अपने परम सुन्दर रूपके कारण देखने ही योग्य थी। वह वनके फूल चुनती हुई गीता गा रही थी। धीरे-धीरे भ्रमण करती हुई वह राजाके समीप आ गयी। 'तब राजाने उससे पूछा-'कल्याणी! तुम कौन और किसकी हो ?' उसने उत्तर दिया-'मैं कन्या हूं-अभी मेरा विवाह नहीं हुआ हैं।' तब राजाने उससे कहा-'भद्रे! मैं तुझे चाहता हूं। 'कन्या बाली' तुम मुझे एक शर्तके साथ पा सकते हो अन्यथा नहीं।' राजाने वह शर्त पूछी। कन्याने कहा- 'मुझे कभी जलका दर्शन न कराना'। 'तब राजाने उससे 'बहुत अच्छा' कहकर उससे ( गान्धर्व ) विवाह किया। विवाहके पश्चात् राजा परीक्षित् अत्यन्त आनन्दपूर्वक उसके साथ क्रीड़ा-विहार करने लगे और एकान्तमें मिलकर उसके साथ चुपचाप बैठे रहे। 'राजा अभी वहीं बैठे थे, इतनेही में उनकी सेना आ पहुंची। 'वह सेना अपने बैठे हुए राजाको चारों ओरसे घेरकर खड़ी हो गयी। अच्छी तरह सुस्ता लेनेके पश्चात् राजा एक साफसुथरी चिकनी पालकीमें उसीके साथ बैठकर अपने नगरको चल दिये और वहां पहुंचकर उस नवविवाहिता सुन्दरी के साथ एकान्तवास करने लगे। 'वहां निकट होते हुए कोई उनका दर्शन नहीं कर पाता था। तब एक दिन प्रधान मंत्रीने राजाके पास रहनेवाली स्त्रियोंसे पूछा। 'यहां तुम्हारा क्या काम हैं ?' उनके ऐसा पूछनेपर उन स्त्रियोंने कहा- 'हमें यहां एक अद्भूत-सी बात दिखायी देती है। महाराजके अन्तःपुरमें पानी नहीं जाने पाता है। ( हमलोग इसीकी चैकसी करती हैं।)' उनकी यह बात सुनकर प्रधानमंत्रीने एक बाग लगवाया, जिसमें प्रत्यक्षरूपसे कोई जलाशय नहीं था। उसमें बड़े सुन्दर और उंचे-उंचे वृक्ष लगवाये गये थे। वहां फल-फूल और कन्द-मूलकी भी बहुतायत थी। उस उपवनके मध्यभागमें एक किनारेकी ओर सुधाके समान स्वच्छ जलसे भरी हुई एक बावली भी बनवायी थी, जो मोतियोंके जालसे निर्मित थी। उस बावलीको ( लताओंद्वारा ) बाहरसे ढक दिया गया था। उस उद्यानके तैयार हो जानेपर मंत्रीने किसी दिन राजासे मिलकर कहा- 'महाराज! यह वन बहुत सुन्दर हैं, आप इसमें भलीभांति विहार करें'। 'मंत्रीके कहनेसे राजाने उसी नवविवाहिता रानीके साथ उस वनमें प्रवेश किया। एक दिन महाराज परीक्षित् उस रमणीय उद्यानमें अपनी उसी प्रियतमाके साथ विहार कर रहे थे। विहार करते-करते जब वे थक गये और भूखप्याससे बहुत पीडि़त होगये, तब उन्हें वासन्ती लताद्वारा निर्मित एक मनोहर मण्डप दिखायी दिया। 'उस मण्डपमें प्रियासहित प्रवेश करके राजाने सुधाके समान स्वच्छ जलसे परिपूर्ण वह बावली देखी।
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