महाभारत वन पर्व अध्याय 199 श्लोक 10-18

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नवनवत्‍यधिकशततम (199) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: नवनवत्‍यधिकशततम अध्‍याय: श्लोक 10-18 का हिन्दी अनुवाद

‘उसने दो घड़ी तक ध्‍यान करके नेत्रों में आंसू भरकर, उद्विग्‍न ह्दय कांपते हुए अचेत की सी दशा में हाथ जोड़कर कहा-‘मैं इन्‍हें क्‍यों नहीं पहचानूंगा। इन्‍होंने एक हजार बार अग्‍न्‍िास्‍था के समय यज्ञ-यूपों की स्‍थापना की है । ‘इनके द्वारा दक्षिणा में दी गई गौओं के जान-आने से यह सरोवर बन गया है, जिसमें मैं निवास करता हूं’ । ‘कच्‍छप के ये सारी बातें सुन लेने के पश्‍चात् देव लोक से एक दिव्‍य रथ आकर प्रकट हुआ और उसमें से इन्‍द्र द्युम्‍न के प्रति कही हुई कुछ बातें सुनायी देने लगीं ‘राजन् आपके लिये स्‍वर्ग लोक प्रस्‍तुत है। वहां चलकर यथोचित स्‍थान ग्रहण करें। आप कीर्तिमान् हैं। अत: निशिचन्‍त होकर स्‍वर्ग लोक की यात्रा करें’ । ‘ इस विषय में श्रलोक हैं-‘जब तक मनुष्‍य के पुण्‍यकर्म का श्‍ब्‍द भूलोक और देवलोक का स्‍पर्श करता हैं, जब तक दोनों लोकों में उसकी कीर्ति बन रहती हैं, अभी तक वह पुरुष स्‍वर्ग लोक का निवासी बताया जाता है । ‘संसार में जिस किसी प्राणी की अपकीर्ति कही जाती है-जब तक उसके अपयश का श्‍ब्‍द गूंजता है, तब तक के लिये वह नीचे के लोकों में गिर जाता है । ‘इसलिये मनुष्‍य को सदा कल्‍याणकारी सत्‍कर्मों में ही लगे रहना चाहिये। इससे अनन्‍त फल की प्राप्ति होती है। पाप पूर्ण चित (चिन्‍तन या विचार) का परित्‍याग करके सदा धर्म का ही आश्रय लेना चाहिये’ । ‘देवदूत की यह बात सुनकर राजा ने कहा- ‘जब तक इन दोनों वृद्धों को इनके स्‍थान पर पहुंचा न दूं। तब तक ठहरे रहो’ । ‘यह कहकर राजा ने मुझे तथा प्रावार कर्ण नामक उलूक को यथोचित स्‍थान पर पहुंचा दिया और उसी रथ से स्‍वर्ग की ओर प्रस्‍थान करके वहां यथोचित स्‍थान प्राप्‍त कर लिया। इस प्रकार मैंने चिरजीवी होकर अनुभव किया है’-यह बात पाण्‍डवों से मार्कण्‍डेयजी ने कही । पाण्‍डव बोले-आपने यह बहुत अच्‍छा किया कि स्‍वर्ग लोक से भष्‍ट हुए राजा इन्‍द्रद्युम्‍न को पुन: अपने स्‍थान की प्राप्ति करवा दी। तब इन से मार्कण्‍डेयजी ने कहा-‘देवकी-नन्‍दन भगवान श्री कृष्‍ण ने भी नरक में डूबते हुए राजर्षि नृग को उस भारी संकट से छुड़ाकर फिर स्‍वर्ग में पहुंचा दिया । इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समास्‍यापर्व में इन्‍द्रद्युम्‍नोपाख्‍यान विषयक एक सौ निन्‍यानबेवां अध्‍याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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