महाभारत वन पर्व अध्याय 19 श्लोक 20-27

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एकोनविंश (19) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: एकोनविंश अध्याय: श्लोक 20-27 का हिन्दी अनुवाद

वह बाण समस्त यादव समुदाय के द्वारा, सम्मानित विषैले सर्प के समान विषाक्त तथा प्रज्वलित अग्नि के समान प्रकाशमान था। उस बाण को प्रत्यंचा पर रखा देख अन्तरिक्षलोक में हाहाकार मच गया। तब इन्द्र और कुबेर सहित सम्पूर्ण देवताओं ने देवर्षि नारद तथा मन के समान वेग वाले वासुदेव को भेजा। उन दोनों ने रुक्मिणीनन्दन प्रद्युम्न के पास आकर देवताओं का यह संदेश सुनाया--‘वीरवर ! यह राजा शाल्व युद्ध में कदापि तुम्हारा वध्य नहीं है। ‘तुम अपने इस बाण को फिर से लौटा लो; क्योंकि यह शाल्व तुम्हारे द्वारा अवध्य है। तुम्हारे इस बाण का प्रयोग होने पर युद्ध में कोई भी पुरुष बिना मरे नहीं रह सकता। महाबाहो ! विधाता ने युद्ध में देवकीनन्दन भगवान श्रीकृष्ण के हाथ से ही इसकी मृत्यु निश्चित की है।' 'उनका वह संकल्प मिथ्या नहीं होना चाहिये।' यह सुनकर प्रद्युम्न बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने श्रेष्ठ धनुष से उस उत्तम बाण को उतार लिया और पुनः तरकस में रख दिया। राजेन्द्र ! तदनन्तर शाल्व उठकर अत्यन्त दुःखित-चित्त हो प्रद्युम्न के बाणों से पीडि़त होने के कारण अपनी सेना के साथ तुरंत भाग गया। महाराज ! उस समय वृष्णिवंशियों से पीडि़त हो क्रूर स्वभाव वाला शाल्व द्वारका को छोड़कर अपने सौभ नामक विमान का आश्रय ले आकाश में जा पहुँचा।'

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में सौभवधोपाख्यानविषयक उन्नीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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