महाभारत वन पर्व अध्याय 200 श्लोक 111-122

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द्विशततम (200) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: द्विशततम अध्‍याय: श्लोक 111-122 का हिन्दी अनुवाद

कोई ‘तत्‍वम्’ अथवा राम, कृष्‍ण, शिव आदि दो अक्षरों से ही परमात्‍म तत्‍व का ज्ञान प्राप्‍त कर लेते हैं। कोई श्‍लोक और पदों से अंकित अन्‍य सैकड़ों तथा सहस्‍त्रों शास्‍त्र वाक्‍यों से परमात्‍मा के स्‍वरुप को जानते हैं। जैसे भी हो, बोध ही मोक्ष का लक्षण है । जिसके मन में संशय भरा हुआ है, उसके लिये न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है। ‘ज्ञान ही मोक्ष का लक्षण है’-यह वृद्ध, ज्ञानी पुरुषों का कथन है । जब मनुष्‍य वेदों के वास्‍तविक प्रयोजन को जान जाता है, तब वह वेदवेत्ता मानव (कर्म विधायक) समस्‍त वेदों से उसी प्रकार उपरत हो जाता है, जैसे मनुष्‍य दावानल से हट जाते हैं । प्रणव से सम्‍बन्‍ध रखने वाले परमात्‍मतत्‍व को यदि तुम युक्ति पूर्वक अर्था त नि:संदेह भाव से समझना चाहते हो, तो कोरा तर्क वाद छोड़कर श्रुति तथा स्‍मृति के वचनों का आश्रय लो; क्‍योंकि जो उपर्युक्‍त साधन का आश्रय नहीं लेता, उसकी बुद्धि तत्‍व का निश्‍चय करने में समर्थ नहीं हो सकती । इसलिये जानने योग्‍य परमात्‍मतत्‍व का ज्ञान वेदों के द्वारा ही यत्‍नपूर्वक प्राप्‍त करना चाहिये; क्‍योंकि वह परमात्‍मतत्‍व को सहज भाव से प्राप्‍त कराने में वेद हेतु है। यह जीवात्‍मा स्‍वयं समर्थ नहीं है; क्‍योंकि वह तत्‍व वेद्यका भी वेद्य है अर्थात् जानने में बड़ा ही गहन है । देवताओं की आयु और कर्मों का शुभा शुभ फल आदि बातें वेद में कही गयी हैं। उसके अनुसार ही देहधारियों का प्रभाव संसार में प्रत्‍येक युग में फलित होता है । अत: मनुष्‍यों को इनिद्रयों की शुद्धि के द्वारा इन विषय भोगों को त्‍याग देना चाहिये। यह इन्द्रियों की निर्मलता और निरोध से होने वाला अनशन (विषयों का अग्रहण) दिव्‍य होता है । तप से स्‍वर्ग लोक में जाने का सौभाग्‍य प्राप्‍त होता है। दान से भोगों की प्राप्ति होती है। ज्ञान से मोक्ष मिलता है, यह जानना चाहिये तथा तीर्थ स्‍नान से पापों का क्षय हो जाता है । ऐसा कहने पर महायशस्‍वी युधिष्ठिर बोले-‘भगवन् । अब मैं (दान की ) उत्तम एवं प्रधान विधि सुनना चाहता हूं । मार्कण्‍डेयजी ने कहा-महाराज युधिष्ठिर । तुम मुझ से जिस दान-धर्म को सुनना चाहते हो, वह गौरवयुक्‍त होने के कारण मुझे सदा ही प्रिय है । श्रुतियों और स्‍मृतियों में जो दान के रहस्‍य बताये गये हैं, उनका वर्णन सुनो-युधिष्ठिर । गुरुवार को अमावस्‍या के योग में पीपल के वृक्ष की छाया को गजच्‍छाया-पर्व कहते हैं। गजच्‍छाया में जहां पीपल के पत्तों की हवा लगती हो, उस प्रदेश में जल के समीप जो श्राद्धा किया जाता है, वह एक लाख कल्‍पों तक नष्‍ट नहीं होता । जो जीविका के लिये रांधा हुआ अन्न का दान करता है, वह स्‍वर्ग लोक में प्रतिष्ठित होता है। जो आश्रय की खोज करने वाले राहगीर-अतिथ को ठहरने के लिये जगह दे वह सम्‍पूर्ण यज्ञों का अनुष्‍ठान पूर्ण कर लेता है।




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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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