महाभारत वन पर्व अध्याय 233 श्लोक 49-61
त्रयस्त्रिशदधिकद्विशततम (233) अध्याय: वन पर्व (द्रौपदीसत्यभामा—संवाद पर्व )
बुद्धिमान् कुन्तीनन्दन युधिष्ठिरकी एक लाख दासियां हाथों में ( भोजनसे भरी हुई ) थाली लिये दिन-रात अतिथियोंको भोजन कराती रहती थीं । ‘जिन दिनों महाराज युधिष्ठिर इन्द्रप्रस्थमें रहकर इस पृथ्वीका पालन करते थे, उस समय प्रत्येक यात्रा में उनके साथ एक लाख घोड़े और एक लाख हाथी चलते थे । मैं ही उनकी गणना करती, आवश्क वस्तुएं देती और उनकी आवश्कताएं सुनती थी । ‘अन्त:पुरके, नौकरोंके तथा ग्वालों और गड़रियोंसे लेकर समस्त सेवकोंके सभी कार्योकी देखभाल मैं ही करती थी और किसने क्या काम किया अथवा कौन काम अधूरा रह गया-इन सब बातोंकी जानकारी भी रखती थी । ‘कल्याणी एवं यस्विनी सत्यभामें ! महाराज तथा अन्य पाण्डवोंको जो कुछ आय, व्यय और बचत होती थी, उस सबका हिसाब मैं अकेली ही रखती और जानती थी । ‘वराननें ! भरतश्रेष्ठ पाण्डव कुटुम्बका सारा भार मुझपर ही रखकर उपासनामें लगे रहते और तदनुरूप चेष्टा करते थे ।‘मुझपर जो भार रक्खा गया था, उसे दुष्ट स्वभावके स्त्री-पुरूष नहीं उठा सकते थे । परंतु मैं सब प्रकारका सुख-भोग छोड़कर रात-दिन उस दुर्वह भारको वहन करनेंकी चेष्टा किया करती थी । ‘मेरे धर्मात्मा पतियों का भरा-पूरा खजाना वरूणके भण्डार और परिपूर्ण महासागरके समान अक्षय एवं अगम्य था ।केवल मैं ही उसके विषयकी ठीक जानकारी रखती थी । ‘रात हो या दिन, मैं सदा भूख-प्यासके कष्ट सहन करके निरन्तर कुरूकुलरत्न पाण्डवोंकी आराधनामें लगी रहती थी । इससे मेरे लिये दिन और रात समान हो गये थे ।‘सत्ये ! मैं प्रतिदिन सबसे पहले उठती और सबसे पीछे सोती थी । यह पति भक्ति और सेवा ही मेरा वशीकरण मन्त्र है ।‘ पतिको वशमें करनेका यही सबसे महत्वपूर्ण उपाय मैं जानती हूँ । दुराचारिणी स्त्रियां जिन उपायोंका अवलम्बन करती है, उन्हें न तो मैं करती हूँ और न चाहती ही हूँ । वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! द्रौपदीकी ये धर्मयुक्त बातें सुनकर सत्यभामानें उस धर्मपरायणा पाच्चालीका समादर करते हुए कहा-‘पाच्चालराजकुमारी ! याज्ञसेनी ! मैं तुम्हारी शरणमें आयी हूँ; ( मैंने जो अनुचित प्रश्र किया है ), उसके लिये मुझे क्षमा कर दो । सखियोंमें परस्पर स्वेच्छा-पूर्वक ऐसी हास-परिहासकी बातें हो जाया करती हैं’ ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्वके अन्तर्गत द्रौपदीसत्यभामा—संवादपर्व में दो सौ तैंतीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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