महाभारत वन पर्व अध्याय 239 श्लोक 17-29
एकोनचत्वारिंशदधिकद्विशततम (239) अध्याय: वन पर्व (घोषयात्रा पर्व )
अत: भरतनन्दन ! दूसरे विश्वसनीय पुरूष गौओंकी गणना करनें के लिये वहां चले जायेंगें । स्वयं तुम्हारा वहां जाना मुझे ठीक नहीं जान पडता । शकुनि बोला-भारत ! ज्येष्ठ पाण्डव युधिष्ठिर धर्मात्मा है । उन्होंनें भरी सभामें यह प्रतिज्ञा की है कि ‘हमें बारह वर्षोतक वन में रहना है’ । अन्य पाण्डव भी धर्मपर ही चलनेवाले हैं; अत: वे सबके सब युधिष्ठिरका ही अनुसरण करते हैं । कुन्तीनन्दन युधिष्ठिर हमलोगोंपर कदापि क्रोध नहीं करेगें । हमारी विशेष इच्छा केवल हिंसक पशुओंका शिकार खेलनेकी है हमलोग वहां स्मरण के लिये केवल गौओंकी गणना करना चाहते हैं । पाण्डवोंसे मिलनेकी इच्छा हमारी बिल्कुल नहीं है ।? हमारी ओरसे वहां कोई भी नीचतापूर्ण व्यवहॉं र नहीं होगा । जहां पाण्डवों का निवास होगा, उधर हम लोग जायेंगें ही नहीं । वैशम्पायनजी कहते हैं–जनमेजय ! शकुनि के ऐसा कहने पर राजा धृतराष्ट्र नें इच्छा न होते हुए भी मन्त्रियोंसहित दुर्योधनको वहां जानेकी आाज्ञा दे दी । धृतराष्ट्रकी आज्ञा पाकर गान्धारीपुत्र भरतश्रेष्ठ दुर्योधन कर्ण और विशाल सेनाके साथ नगरसे बाहर निकला । दु:शासन, बुद्धिमान् शकुनि, अन्यान्य भाइयों तथा सहस्त्रों स्त्रियोंसे घिरे हुए दुर्योधनने वहांसे प्रस्थान किया । द्वैतवन नामक सरोवर तथा वनको देखने के लिये यात्रा करने वाले महाबाहु दुर्योधनके पीछे समस्त पुरवासी भी अपनी स्त्रियोंको साथ लेकर गये । दुर्योधन के साथ आठ हजार रथ, तीस हजार हाथी: कई हजार पैदल और नौ हजार घोड़े गये । बोझ ढ़ोनेके लिये सैकड़ों छकड़े, दुकानें तथा वेष- भूषाकी सामग्रियां भी साथ चलीं । वणिक्, वंदीजन तथा आखेटप्रिय मनुष्य सैकड़ों-हजारोंकी संख्यामे साथ गये । राजन् ! राजा दुर्योधन के प्रस्थानकालमें बड़े जोरका कोलाहल हुआ, मानो वर्षा कालमें प्रचण्ड वायुका भयंकर शब्द सुनायी दे रहा हो । नगरसे दो कोस दूर जाकर राजा दुर्योधन पड़ाव डाल दिया । फिर वहांसे समस्त वाहनोंके साथ द्वैतवन एवं सरोवरकी ओर प्रस्थान किया ।
इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्वके अन्तर्गत घोयात्रापर्वमें दुर्योधनप्रस्थानविषयक दो सौ उन्नतालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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