महाभारत वन पर्व अध्याय 273 श्लोक 1-12
त्रिसप्तत्यधिकद्विशततम (273) अध्याय: वन पर्व( रामोपाख्यान पर्व )
जनमेजय ने पूछा-इस प्रकार द्रौपदीका अपहरण होनेपर महान् क्लेश उठानेके पश्चात् मनुष्योंमें सिंहके समान पराक्रमी पाण्डवोंने कौन सा कार्य किया ? वैशम्पायनजी बोले—जनमेजय ! इस प्रकार जयद्रथको जीत द्रौपदीको छुड़ाकर लेनेके पश्चात धर्मराज युधिष्ठिर मुनिमण्डलीके साथ बैठे हुए थे । महर्षिलोग भी पाण्डवोंपर आये हुए संकटको सुनते और उसके लिये बारंबार शोक करते थे । उन्हींमेंसे मार्कण्डेयजीको लक्ष्य करके पाण्डु नन्दन युधिष्ठिरने इस प्रकार कहा । युधिष्ठिर बोले- भगवन् ! आप भूत, भविष्य और वर्तमान-तीनों कालोंके ज्ञाता हैं । देवर्षियोंमें भी आपका नाम विख्यात है अत: आपसे मैं अपने हृदयका एक संदेह पूछता हूँ, उसका निवारण कीजिये । यह परम सौभाग्यशालिनी द्रुपदकुमारी यज्ञकी वेदीसे प्रकट हुई है; अत: अयोनिजा है ( इसे गर्भवासका कष्ट नहीं सहन करना पड़ा है ) इसे महात्मा पाण्डुकी पुत्रवधु होनेका गौरव भी मिला है । मेरी समझमें भगवान् काल, विधि निर्मित दैव और समस्त प्राणियोंकी भवितव्यता अर्थात् उनके लिये होने वाली घटना-ये तीनों ही प्रबल हैं; इनको कोई टाल नहीं सकता । अन्यथा हमारी इस पत्नीको, जो धर्मको जानने वाली तथा धर्मके पालनमें तत्पर रहनेवाली है, ऐसा भाव ( अपहृत होनेका लाच्छन ) कैसे स्पर्श कर सकता था । यह तो ठीक वैसा ही है, जैसे किसी शुद्ध आचार-विचारवाले मनुष्यपर झूठे ही चोरीका कलंक लग जाय । इसने कभी कोई पाप या निन्दित कर्म नही किया है । द्रौपदीने ब्राह्मणोंके प्रति सेवा-सत्कार आदिके रूपमें महान् धर्मका आचरण किया है । ऐसी स्त्रीका भी मूढ़बुद्धि पापी राजा जयद्रथने बलपूर्वक अपहरण किया । इस अपहरणके ही कारण उसका सिर मूंड़ा गया, वह अपने सहायकों सहित युद्धमें पराजित हुआ तथा हम लोग सिन्धु देशकी सेनाका संहार करके पुन: द्रौपदीको लौटा लाये हैं ।
इस प्रकार हमने जिसे कभी सोचा तक न था, वह अपनी पत्नीका अपहरणरूप अपमान हमें प्राप्त हुआ और मिथ्या व्यवसायमें लगे हुए बान्धवोंने हमें देशसे निर्वासित कर दिया है । अत: मैं पूछताहूँ, क्या संसारमें मेरे-जैसा मन्द भाग्य मनुष्य कोई और भी है अथवा आपने पहले कभी मुझ-जैसे भाग्यहीनको कहीं देखा या सुना है ।
इस प्रकार श्री महाभारत वनपर्वके अन्तर्गत रामोपाख्यानपर्वमें युधिष्ठिरप्रश्नविषयक दो सौ तिहत्तरवां अध्याय पूरा हुआ ।
« पीछे | आगे » |