महाभारत वन पर्व अध्याय 280 श्लोक 65-74
अशीत्यधिकद्वशततम (280) अध्याय: वन पर्व (रामोख्यान पर्व )
‘सपने में मैंने देखा है कि रावण तेल से नहाये, मुँह मुँडाये, कीचड़ में डूब रहा है। फिर कई बार देखने में आया कि वह गदहों से जुते हुए रथ पर खड़ा होकर नृत्य सा कर रहा है’। ‘उसके साथ ही ये कुम्भकर्ण आदि राक्षस भी मूँड़ मुँड़ाये, लाल चन्दन लगाये, लाल फूलों की माला पहने, नंगे होकर दक्षिण दिशा की ओर जा रहे हैं’। ‘केवल विभीषण ही श्वेत छत्र धारण किये, सफेद पगड़ी पहने एवं श्वेत पुष्पों की माला से अलंकृत हो श्वेत चन्दन लगाये श्वेत पर्वत पर आरूढ़ दिखायी दिये’। ‘इनके चारों मन्त्री भी श्वेत पुष्पमाला और चन्दन से चर्चित हो श्वेत पर्वत के शिखर पर बैइे थे; अतः विभीषण के साथ वे भी आने वाले महान् भय से मुक्त हो जायँगे’। ‘स्वप्न में मुझे यह भी दिखाई दिया है कि भगवान श्रीराम के बाणों से समुद्रसहित सारी पृथ्वी आच्छादित हो गयी है; अतः यह निश्चित है कि तुम्हारे पतिदेव अपने सुयश से समस्त भूमण्डल को परिपूर्ण कर देंगे’। ‘इसी तरह मैंेने लक्ष्मण को भी देखा है। वे हड्डियों के ढेर पर बैइे हुए मधुमिश्रित खीर खा रहे थे और ऐसा जान पड़ता था, मानो वे समसत दिशाओं को दग्ध कर देना चाहते हैं’। विदेहनन्दिनी सीते ! इस सपने से यहीप्रतीत होता है कि तुम शीघ्र ही अपने स्वामी से मिलकर हर्ष का अनुभव करोगी। भाई लक्ष्मण सहित श्रीरामचन्द्रजी से तुमहारी अवश्य भेंट होगी; इसमें अब अधिक विलम्ब नहीं है’। त्रिजटा की यह बात सुनकर मृगशावक से नेत्रों वाली सीता को पुनः पतिदेव से मिलने की आशा बँध गयी। इतने में अत्यन्त क्रूर स्वभाव वाली वे भयंकर पिशाचिनियाँ रावण के दरबार से लौट आयी। आकर उन्होंने देखा, सीता त्रिजटा के साथ पूर्ववत् अपने स्थान पर बैठी है।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत रामोख्यान पर्व में त्रिजटा का सीता को आश्वासन विषयक दो सौ अस्सीवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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