महाभारत वन पर्व अध्याय 294 श्लोक 21-33

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चतुर्नवत्यधिकद्विशततम (294) अध्याय: वन पर्व (पतिव्रतामाहात्म्यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुर्नवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 21-33 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


अश्वपति बोले- भगवन् ! आप तो उसे सभी गुणों से सम्पन्न ही बता रहे हैं, यदि उसमें कोई दोष हों तो उन्हें भी बताइये। नारदजर ने कहा- दोष तो एक ही है, जो उसके सभी गुणों को दबाकर स्थित है। उस दोष को प्रयत्न करके भी हटाया नहीं जा सकता। आज से लेकर एक वर्ष पूर्ण होने तक सत्यवान् की आयु पूर्ण हो जायगी और वह शरीर त्याग देगा। केवल यही दोष उसमें है, दूसरा नहीं। राजा बोले- बेटी सावित्री ! यहाँ आ। शोभने ! तू पुनः यात्रा का और दूसरे किसी पुरुष का वरण कर ले। सत्यवान् का यह एक ही बहुत बड़ा दोष है, जो उसके सभी गुणों को दबाकर स्थित है। जैसा कि देववन्दित भगवान नारदजी कह रहे हैं, सत्यवान् की आयु बहुत थोड़ी है और वह एक ही वर्ष में देहत्याग कर देगा। सावित्री बोली- भाइयों में धन कर बँटवारा एक ही बार होता है, कन्या एक ही बार दी जाती है तथा श्रेष्ठ दाता ‘मैं दूँगा’, यह कहकर एक ही वचनदान करता है। ये तीन बातें एक-एक बार ही होती हैं। सत्यवान् दीर्धायु हों या अल्पायु, गुणवान् हों या गुणहीन; मैंने उन्हें एक बार अपना पति चुन लिया। अब मैं दूसरे किसी पुरुष का वरण नहीं कर सकती। पहले मन ने निश्चय करके फिर वाणी द्वारा कहा जाता है। तत्पश्चात् उसे कार्यरूप में परिणत किया जाता है, अतः इस विषय में मेरा मन ही प्रमाण है। नारदजी बोले- नरश्रेष्ठ ! आपकी पुत्री सावित्री बुद्धि स्थिर है। इसे इस धर्म मार्ग से किसी तरह हटाया नहीं जा सकता। सत्यवान् में जो गुण हैं, वे दूसरे किसी पुरुष में हैं भी नहीं। अतः मुझे आपकी पुत्री का सत्यवान् के साथ विवाह कर देना ठीक मालूम पड़ता है। राजा बोले- देवर्षे ! आपने जो बात कही है, यह ठीक है। उसे टाला नहीं जा सकता। अतः मैं ऐसा ही करूँगा, क्योंकि आप मेरे गुरु हैं। नारदजी ने कहा- राजन् ! आपकी पुत्री सावित्री के विवाह में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न आये। अच्छा, अब मैं चलता हूँ। आप सब लोगों का कल्याण हो। मार्कण्डेयजी कहते हैं- युधिष्ठिर ! उेसा कहकर नारदजी उठे और स्वर्गलोक में चले गये। इधर राजा भी अपनी पुत्री क विवाह की तैयारी कराने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अनतर्गत पतिव्रतामाहात्म्यपर्व में सावित्री उपाख्यान विषयक दो सौ चैरानवेवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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