महाभारत वन पर्व अध्याय 298 श्लोक 1-16

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अष्टनवत्यधिकद्विशततम (298) अध्याय: वन पर्व (पतिव्रतामाहात्म्यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्टनवत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः 1-16 श्लोक का हिन्दी अनुवाद


पत्नी सहित राजा द्युमत्सेन की सत्यवान् के लिये चिन्ता, ऋषियों का उन्हें आश्वासन देना, सावित्री और सत्यवान् का आगमन तथा सावित्री द्वारा विलम्ब से आने के कारण पर प्रकाश डालते हुए वर प्रापित का विवरण बताना मार्कण्डेयजी कहते हैं- युधिष्ठिर ! इसी समय महाबली महाराजा द्युमत्सेन को उनकी खोयी हुई आँखें मिल गयीं। दृष्टि स्वच्छ हो जाने के कारण वे सब कुद देखने लगे।। भरतश्रेष्ठ ! वे अपनी पत्नी शैव्या के साथ सभी आश्रमों में जाकर पुत्र का पता लगाने लगे। उस समय उन्हें सत्यवान् के लिये बड़ी वेदना हो रही थी। वे दोनों पति-पत्नी उस रात में पुत्र की खोज करते हुए विभिन्न आश्रमों, नदी के तटों तथा वनों और सरोवरों में भ्रमण करने लगे। जो कोई भी शब्द कान में पड़ता, उसी को सुनकर वे अपने पुत्र के आने की आशंका से उत्सुक हो उठते और परस्पर कहने लगते कि ‘सावित्री के साथ सत्यवान् आ रहा है’। उनके पैरों में बिवाई फट गयी थी, वे कठोर हो गये थे तथा घाव हो जाने के कारण रक्त से भीगे रहते थे, तो भी उन्ही पैरों से वे दोनों दम्पति इधर-उधर पागलो की भाँति दौड़ रहे थे। उस समय उनके अंगों में कुश और काँटे बिंध गये थे। तब उन आश्रमों में रहने वाले समसत ब्राह्मणों ने उनके पास जा उन्हें सब ओर से घेरकर आश्वासन दिया तथा उन दोनों को उनके आश्रम पर पहुँचाया। तपस्या के धनी वृद्ध ब्राह्मणों द्वारा घिरे हुए पत्नी सहित राजा द्युमतसेन को प्राचीन राजाओं की विचित्र अर्थों से भरी हुई कथाएँ सुनाकर पूरा आश्वासन दिया गया, तो भी वे दोनों वृद्ध बारंबार सान्त्वना मिलते रहने पर भी अपने पुत्र को देखने की इच्छा से उसके बचपन की बातें सोचते हुए बहुत दुखी हो गये थे। वे शोककातर दम्पत्ति बारेबार करूण वचन बोलते हुए- ‘हा पुत्र ! हा सती-साध्वी बहू ! तुम कहाँ हो? कहाँ हो ?’ यों कहकर रोने लगे। उस समय एक सत्यवादी ब्राह्मण ने उन दोनों से इस प्रकार कहा। सुवर्चा बोले- सत्यवान् की पत्नी सावित्री जैसी तपस्या, इन्द्रियसंयम तथा सदाचार से संयुक्त है, उसे देखते हुए मैं कह सकता हूँ कि सत्यवान् जीवित है। गौतम बोले- मैंने छहों अ्रगों सहित समपूर्ण वेदों का अध्ययन किया है। महान् तप का संचय किया है। कुमारावस्था से ही ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए गुरुजनों तथा अग्निदेव को संतुष्ट किया है। एकाग्रचित्त होकर सभी व्रत पूर्ण किये हैं। पूर्वकाल में हवा पीकर विधिपूर्वक उपवास व्रत का साधन किया है। इस तपस्या के प्रभाव से मैं दूसरो की सारी चेष्टाओं को जान लेता हूँ। आप लोग मेरी बात सच मानें कि सत्यवान् जीवित है। गौतम के शिष्य ने कहा- मेरे गुरुजी के मुख से जो बात निकली है, वह कभी मिथ्या नहीं हो सकती। सत्यवान् अवश्य जीवित है। कुछ ऋषियों ने कहा- सत्यवान् की पत्नी सावित्री उन सभी शुभ लक्ष्णों से युक्त है, जो वैधव्य का निवारण करके सौभाग्य की वृद्धि करने वाले हैं इसतिये सत्यवान् अवश्य जीवित है। भारद्वाज बोले- सत्यवान् की पत्नी सावित्री जैसी तपस्या, इन्द्रियसंयम तथा सदाचार से संयुक्त है, उसे देखते हुए मैं कह सकता हूँ कि सत्यवान् जीवित है।





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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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