महाभारत वन पर्व अध्याय 313 श्लोक 52-66

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त्रयोदशाधिकत्रिशततम (313) अध्याय: वन पर्व (आरणेयपर्व)

महाभारत: वन पर्व: त्रयोदशाधिकत्रिशततमोऽध्यायः श्लोक 52-66 का हिन्दी अनुवाद



युधिष्ठिर बोले- बाणविद्या क्षत्रियों का देवत्व है, यज्ञ उनका सत्पुरुषों का सा धर्म है, भय मानवीय भाव है और शरण में आये हुए दुखियों का मरित्याग कर देना उनमें असत्पुरुषों का सा आचरण है। यक्ष ने पूछा- कौन एक वस्तु यज्ञिय साम है , कौन एक (यज्ञ सम्बन्धी) यज्ञिय है , कौन एक वस्तु यज्ञ का वरण करती है ? और किस एक कायज्ञ अतिक्रण नहीं करता ? युधिष्ठिर बोले- प्राण ही यज्ञिय साम है, मन ही यज्ञसम्बन्धी यजु है, एकमात्र ऋचा ही यज्ञ का वरण करती है और उसी का यज्ञ अतिक्रमण नहीं करा। यक्ष ने पूछा- खेती करने वालों के लिये कौन सी वस्तु श्रेष्ठ है ? बिखेरने (बोने) वालों के लिये क्या श्रेष्ठ है ? प्रतिष्ठा-प्राप्त धनियों के लिये कौन सी वस्तु श्रेष्ठ है ? तथा संतानोत्पादन करने वालों के लिये क्या श्रेष्ठ है ? युधिष्ठिर बोले- खेती करने वालों के लिये वर्षा श्रेष्ठ है। बिखेरने (बोने) वालों के लिये बीज श्रेष्ठ है। प्रतिष्ठाप्राप्त धनियों के लिये गौ (का पालन-पोषण और संग्रह) श्रेष्ठ है और संतानोत्पादन करने वालों के लिये पुत्र श्रेष्ठ है। 1829 यक्ष ने पूछा- ऐसा कौन पुरुष है, जो बुद्धिमान्, लोक में सम्मानित और सब प्राणियों का माननीय होकर एवं इन्द्रियों के विषयों को अनुभव करते तथा श्वास लेते हुए भी वास्तव में जीवित नहीं हैं ? युधिष्ठिर बोले- जो देवता, अतिथि, भरणीय कुअुम्बीजन, पितर और आत्मा-इन पाँचों का पोषण नहीं करता, वह श्वास लेने पर भी जीवित नहीं है। यक्ष ने पूछा- पुथ्वी से भी भारी क्या है ? आकाश से भी ऊँचा क्या है ? वायु से भी तेज चलनेवाला क्या है ? और तिनकों से भी अणिक (असंख्य) क्या है ? युधिष्ठिर बोले- माता का गौरव पृथ्वी से भी अधिक है। पिता आकाश से भी ऊँचा है। मन वायु से भी तेज चलने वालर है और चिन्ता तिनकों से भी अधिक असंख्य एवं अनन्त है। यक्ष ने पूछा- कौन सोने पर भी आँखें नहीं मूंदता ? उत्पनन हाकर भी कौन चेष्टा नहीं करता ? किसमें हृदय नहीं है ? और कौन वेग से बढ़ता है। युधिष्ठिर बोले- मछली सोने पर भी आँखें नहीं मूँदती, अण्डा उत्पन्न होकर भी चेष्टा नहीं करता, पत्थरों में हृदय नहीं है और नदी वेग से आगे बढ़ती है। यक्ष ने पूछा- प्रवासी (परदेश के यात्री)का मित्र कौन है ? गृहवासी (गृहस्थ) का मित्र कौन है ? रोगी का मित्र कौन है ? और मृत्यु के समीप पहुँचे हुए पुरुष का मित्र कौन है ? युधिष्ठिर बोले- सहयात्रियों का समुदाय अथवा साथ में यात्रा करने वाला साथी ही प्रवासी मित्र है, पत्नी गृहवासी का मित्र है, वैद्य रोगी का मित्र है और दान मुमूर्षु (अर्थात्) मनुष्य का मित्र है। यक्ष ने पूछा- राजेन्द्र ! समसत प्राणियों का अतिथि कौन है ? सनातन धर्म क्या है ? अमृत क्या है , और वह सारा जगत् क्या है ? युधिष्ठिर बोले- अग्नि समसत प्राणियों का अतिथि है, गौ का दूध अमृत है, अविनाशी नित्य धर्म ही सनातन धर्म है और वायु यह सारा जगत् है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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