महाभारत वन पर्व अध्याय 56 श्लोक 20-31

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षट्पञ्चाशत्तम (56) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: षट्पञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 20-31 का हिन्दी अनुवाद

‘नरश्रेष्ठ ! आप और इन्द्र आदि सब देवता एक ही साथ उस रंगमण्डप में पधारें, जहां मेरा स्वयंवर होनेवाला है। ‘नरेश्वर ! नरव्याघ्र ! तदनन्तर में उन लोकपालों के समीप ही आपका वरण कर लूंगी। ऐसा करने से (आपको कोई) दोष नहीं लगेगा’। युधिष्ठिर ! विदर्भराजकुमारी के ऐसा कहने पर राजा नल पुनः वहीं लौट आये, जहां देवताओं से उनकी भेट हुई थी। महान् शक्तिशाली लोकपालों ने इस प्रकार राजा नल को लौटते देखा और उन्हें देखकर उनसे सारा वतान्त्त पूछा- ‘राजन् ! क्या तुम्ने पवित्र मुस्कानवाली दमयन्ती को देखा है ? पापरहित भूपाल ! हम सब लोगों हम सब लोगों को उसने क्या संदेश दिया बताओ’। नलने कहा-देवताओ ! आपकी आज्ञा पाकर मैं दमयन्ती के महल में गया। उसकी ड्योढ़ी विशाल थी और दण्डधारी बूढ़े रक्षक घेरकर पहरा दे रहे थे। आपलोगों के प्रभाव से उसमें प्रवेश करते समय मुझे वहां राजकन्या के सिवा दूसरे किसी मनुष्य ने नहीं देखा। दमयन्ती की सखियों को भी मैंने देखा और उन सखियों ने भी मुझे देखा। देवेश्वरों ! वे सब मुझे देखकर आश्चर्यचकित हो गयीं। श्रेष्ठ देवताओ ! जब में आपलोगों के प्रभाव का वर्णन करने लगा, उस समय सुमुखी दमयन्ती ने मुझ में ही अपना मानसिक संकल्प रखकर मेरा ही वरण किया। उस बालाने मुझसे यह भी कहा कि ‘नरव्याध्र ! सब देवता आपके साथ उस स्थान पर पधारें, जहां स्वयंवर होनेवाला है। ‘निषधराज ! मैं उन देवताओं के समीप ही आपका वरण कर लूंगी। महाबाहो ! ऐसा होनेपर आपको दोष नहीं लगेगा’। देवताओ ! दमयन्ती के महल का इतना ही वृतान्त्त है, जिसे मैंने ठीक-ठीक निवेदन कर दिया । देवेश्वरगण ! अब इस सम्पूर्ण विषय में आप जब देवतालोग ही प्रमाण हैं, अर्थात् आप ही साक्षी हैं।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपख्यान पर्व में नलकर्तृक देवदौत्यविषयक छप्पनवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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