महाभारत वन पर्व अध्याय 84 श्लोक 48-71

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चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 48-71 का हिन्दी अनुवाद

भरतनन्दन ! ऋषिकुल्या एवं वासिष्ठतीर्थ में जाकर स्नान आदि करके वासिष्ठी को लांघकर जानेवाले क्षत्रिय आदि सभी वर्णों के लोग द्विजाति हो जाते हैं। ऋषिकुल्या में जाकर स्नान करके पापरहित मानव देवताओं और पितरों की पूजा करके ऋषिलोक में जाता है। नरेश्वर ! यदि मनुष्य भृगुतुंग में जाकर शाकाहारी हो वहां मासतक निवास करे तो उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। वीरप्रभोक्षतीर्थ में जाकर मनुष्य उस पापों से छुटकारा पा जाता है। भारत ! कृत्तिका और मघा के तीर्थ में जाकर मानव अग्निष्टोम और अतिरात्र यज्ञों का फल पाता है। वहीं प्रातः-संध्या के समय परम उत्तम विद्यातीर्थ में जाकर स्नान करने से मनुष्य जहां-कहीं भी विद्या प्राप्त कर लेता है। जो सब पापों से छुड़ानवाले महाश्रमतीर्थ में एक समय उपवास करके एक रात वहीं निवास करता है, उसे शुभ लोकों की प्राप्ति होती है। जो छठे समय उपवासपूर्वक एक मासतक महालयतीर्थ में निवास करता है, वह सब पापों से शुद्धचित्त हो प्रचुर सुवर्णराशि प्राप्त करता है। साथ ही दस पहले की और दस बाद की पीढि़यों का भी उद्धार कर देता है। तत्पश्चात् ब्रह्माजी के द्वारा सेवित वेतसिकातीर्थ में जाकर मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता और शुक्राचार्य के लोक में जाता है। इसके बाद इन्द्रियसंयम और ब्रह्मचर्य के पालनपूवर्क ब्राह्मणीतीर्थ में जाने से मनुष्य कमल के समान कांतिवाले विमान द्वारा ब्रह्मलोक में जाता है। तदनन्तर सिद्धसेवित पुण्यमय नैमिष (नैमिषारण्य) तीर्थ में जाय। वहां देवताओं के साथ ब्रह्माजी नित्य निवास करते हैं। नैमिषी खोज करनेवाले पुरूष का आधा पाप उसी समय नष्ट हो जाता है और उसमें प्रवेश करते ही वह सारे पापों से छुटकारा पा जाता है। धीर पुरूष तीर्थसेवन में तत्पर हो एक मासतक नैमिष में निवास करे। पृथ्वी में जितने तीर्थ है, यह गोमेधयज्ञ का फल पाता है। भरतश्रेष्ठ ! अपने कुल की सात पीढि़यों का भी वह उद्धार कर देता है। जो नैमिष में उपवासपूर्वक प्राणत्याग करता है, वह सब लोकों में आनंद का अनुभव करता है; ऐसा मनीषी पुरूषों का कथन है। नृपश्रेष्ठ ! नैमिषीतीर्थ नित्य, पवित्र और पुण्यजनक है। गंगोöदतीर्थ में जाकर तीन रात उपवास करनेवाले मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता और सदा के लिये ब्रह्मीभूत हो जाता है। सरस्वती तीर्थ में जाकर देवता और पितरों का तर्पण करे। इससे तीर्थयात्री सारस्वतलोकांे में जाकर आनंद का भागी होता है; इसमें संशय नहीं हैं। तदनन्तर बाहुदा-तीर्थ में जाय और ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक एकाग्रचित्त हो वहां एक रात उपवास करे; इससे वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है कुरूनन्दन ! उसे देवसत्र यज्ञ का भी फल प्राप्त होता है।वहां से क्षीरवती नामक पुण्यतीर्थ में जाय, जो अत्यन्त पुण्यात्मा पुरूषों से भरी हुई है। वहां स्नान करके देवता और पितरों के पूजन में लगा हुआ मनुष्य वाजपेय यज्ञ का फल पाता है। वहीं विमलाशोक नामक उत्तम तीर्थ है, वहां जाकर ब्रह्मचर्यपालनपर्वूक एकाग्रचित्त हो एक रात निवास करने से मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। वहां से सरयू के उत्तम तीर्थ गोप्रतार में जाय। महाराज ! वहां अपने सेवकों, सैनिकों और वाहनों के साथ गोते लगाकर उस तीर्थ के प्रभाव से वे वीर श्रीरामचन्द्र जी अपने नित्यधाम को पधारे थे।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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