महाभारत वन पर्व अध्याय 85 श्लोक 113-132

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पञ्चाशीतितम (85) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: पञ्चाशीतितम अध्याय: श्लोक 113-132 का हिन्दी अनुवाद

कुरूश्रेष्ठ ! शास्त्र के तात्त्विक अर्थ को जाननेवाले भीष्मजी ने महर्षि पुलस्त्य के वचन से (तीर्थयात्रा के लिये) सारी पृथ्वी की परिक्रमा की। महाभाग ! इस प्रकार यह सब पापों को दूर करनेवाली महापुण्यमयी तीर्थयात्रा प्रतिष्ठानपुर (प्रयाग में) प्रतिष्ठित है। जो इस विधि से (तीर्थयात्रा के उद्देश्य से) सारी पृथ्वी की परिक्रमा करेगा, वह सौ अश्वमेधयज्ञों भी उत्तम पुण्यफल पाकर देहत्याग के पश्चात् उसका उपभोग करेगा। कुन्तीनन्दन ! कुरूप्रवर भीष्म ने पहले जिस प्रकार तीर्थयात्राजनित पुण्य प्राप्त किया था, उससे भी आठगुने उत्तम धर्म की उपलब्धि तुम्हें होगी। तुम अपने साथ सब ऋषियों को ले जाओगे, इसीलिये तुम्हंे आठवा पुण्यफल प्राप्त होगा। भरतकुलभूषण कुरूनन्दन ! इन सभी तीर्थो में राक्षसों के समुदाय फैले हुए हैं। तुम्हारे सिवा, दूसरे नरेशों ने वहां की यात्रा नहीं की है। जो मनुष्य सबेरे उठकर देवर्षि पुलस्त्य द्वारा वर्णित सम्पूर्ण तीर्थों के माहात्म्य से संयुक्त इस प्रसंग का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है। महाराज ! ऋषिप्रवर, वाल्मीकि, कश्यप, आत्रेय, कुण्डजठर, विश्वामित्र, गौतम, असित, देवल, मार्कण्डेय, गालव, भरद्वाज, वसिष्ठ, उद्दालक मुनि, शौनक तथा पुत्रसहित तपोधनप्रवर, व्यास, मुनिश्रेष्ठ दुर्वासा और महातेजस्वी जाबालि-ये सभी महर्षि, जो तपस्या के धनी हैं, तुम्हारी प्रतिक्षा कर रहे हैं। इन सबके साथ उक्त तीर्थों में जाओ। महाराज ! ये अमितेजस्वी महर्षि लोमश तुम्हारे पास आनेवाला हैं, तुम्हें साथ लेकर यात्रा करो। धर्मज्ञ ! इस यात्रामें मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा। प्राचीन राजा महाभिष के समान तुम भी क्रमशः इन तीर्थों में भ्रमण करते हुए महान् यश प्राप्त करोगे। नृपश्रेष्ठ ! जैसे धमात्मा ययाति तथा राजा पुरूरवा थे वैसे ही तुम भी अपने धर्म से सुशोभित हो रहे हो। जैसे राजा भगीरथ तथा विख्यात महाराज श्रीराम हो गये हैं, उसी प्रकार तुम भी सूर्य की भांति सब राजाओं से अधिक शोभा पा रहे हो। महाराज ! जैसे मनु, जैसे इक्ष्वाकु, जैसे महायशस्वी पूरू और जैसे वेननन्दन पृथु हो गये हैं, वैसी ही तुम्हारी भी ख्याति है। पूर्वकाल में वृत्रासुरविनाशक देवराज इन्द्र ने जैसे सब शत्रुओं का संहार करते हुए निश्चिंत होकर तीनों लोको का पालन किया था, उसी प्रकार तुम भी शत्रुओं का नाश करके प्रजा का पालन करोगे। कमलनयन नरेश ! तुम अपने धर्म से जीती हुई पृथ्वी पर अधिकार प्राप्त करके स्वधर्मपालन द्वारा कीर्तवीर्य अर्जुन के समान विख्यात होओगे।। वैशम्पायनजी कहते हैं-महाराज जनमेजय ! देवर्षि नारद इस प्रकार राजा युधिष्ठिर को आश्वासन देकर उनकी आज्ञा ले वहीं अन्तर्धान हो गये। धर्मात्मा युधिष्ठिर ने भी इसी विषय का चिन्तन करते हुए अपने पास रहनेवाले महर्षियों से तीर्थयात्रासम्बन्धी महान् पुण्य के विषय में निवेदन किया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत वनपर्व के अन्तर्गत तीर्थयात्रा में महर्षि पुलस्त्य की तीर्थयात्रा के सम्बन्ध में नारदवाक्यविषयक पचासीवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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