महाभारत वन पर्व अध्याय 85 श्लोक 44-66

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पञ्चाशीतितम (85) अध्‍याय: वन पर्व (तीर्थयात्रा पर्व)

महाभारत: वन पर्व: पञ्चाशीतितम अध्याय: श्लोक 44-66 का हिन्दी अनुवाद

सप्तगोदावरतीर्थ में स्नान करके नियम-पालनपूर्वक नियमित भोजन करनेवाला पुरूष महान् पुण्यलाभ करता है और देवलोक में जाता है। तत्पश्चात् नियमपालन के साथ साथ नियमित आहार ग्रहण करनेवाला मानव देवपथ में जाकर देवसत्र का जो पुण्य है, उसे पा लेता है। तुंगकाण्य में जाकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए इन्द्रियों को अपने वश में रखे। प्राचीन काल में वहां सारस्वत ऋषि ने अन्य ऋषियों को वेदों का अध्ययन कराया थ। एक समय उन ऋषियों को सारा वेद भूल गया। इस प्रकार वेदों के नष्ट होने (भूल जाने) पर अंगिरा मुनिका पुत्र ऋषियों के उत्तरीय वस्त्रों (चादरों) में छिपकर सुखपूर्वक बैठ गया (और विधिपूर्वक ओमकार का उच्चारण करने लगा)। नियम के अनुसार ओम कारका ठीक-ठीक उच्चारण होने पर, जिसने पूर्वकाल में जिस वेद का अध्ययन एवं अभ्यास किया था, उसे वह सब स्मरण हो आया। उस समय वहां बहुत से ऋषि, देवता, वरूण, अग्नि, प्रजापति, भगवान् नारायण और महादेवजी भी उपस्थित थे। महातेजस्वी भगवान् ब्रह्मा ने देवताओं के साथ जाकर परम कांतिमान् भृगु को यज्ञ कराने के कामपर नियुक्त किया। तदनन्तर भगवान् भृगु ने वहां सब ऋषियों के यहां शास्त्रीय विधि के अनुसार पुनः भलीभांति अग्निस्थापन कराया। उस समय आज्यभाग के द्वारा विधिपूर्वक अग्नि को तृप्त करके सब देवता और ऋषि क्रमशः अपने-अपने स्थान को चले गये। नृपश्रेष्ठ ! उस उस तुंगकारण्य में प्रवेश करते ही स्त्री या पुरूष सबके पाप नष्ट हो जाते हैं। धीर पुरूष को चाहये कि वह नियमपालनपूर्वक नियमित भोजन करते हुए एक मासतक वहां रहे । राजन् ! ऐसा करनेवाला तीर्थयात्री ब्रह्मलोक में जाता और अपने कुल का उद्धार कर देता है। तत्पश्चात् मेधाविकतीर्थ में जाकर देवताओं और पितरों का तर्पण करे; ऐसा करनेवाला पुरूष अग्निष्टोमयज्ञ का फल पाता और स्मृति एवं बुद्धि को प्राप्त कर लेता है। इस तीर्थ में कालंजर नामक लोकविख्यात पर्वत है, वहां देवह्रद नामक तीर्थ में स्नान करने से सहस्त्र गोदान का फल मिलता है। राजन् ! जो कालंजर पर्वत पर स्नान करके वहां साधन करता है, वह मनुष्य स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है; इसमें संशय नहीं है। राजन् ! तदनन्तर पर्वतश्रेष्ठ चित्रकूट में सब पापों का नाश करनेवाली मन्दाकिनी के तटपर पहुंचकर उसमें स्नान करे और देवताओं तथा पितरों की पूजा में लग जाय। इससे वह अश्वमेधयज्ञ का फल पाता और परम गति को प्राप्त होता है।। धर्मज्ञनरेश ! तत्पश्चात् तीर्थयात्री परम उत्तम भतृस्थान की यात्रा करे, जहां महासेन कार्तिकेय जी निवास करते हैं। नृपश्रेष्ठ ! वहां जानेमात्र से सिद्धि प्राप्त होती है। कोटि-तीर्थ में स्नान करके मनुष्य सहस्त्र गोदान का फल पाता है। उसकी परिक्रमा करके तीर्थयात्री मानव ज्येष्ठस्थान को जाय। वहां महादेवजी का दर्शन-पूजन करने से वह चन्द्रमा के समान प्रकाशित होता है। भरतकुलभूषण महाराज युधिष्ठिर ! वहां एक कूप है, जिसमें चारों समुद्र निवास करते हैं। राजेन्द्र ! उसमें स्नान करके देवताओं और पितरों के पूजन तत्पर रहनेवाला जितात्मा पुरूष पवित्र हो परमगति प्राप्त होता है। राजेन्द्र ! वहां से महान् शंगवेरपुर की यात्रा करे। महाराज ! पूर्वकाल में दशरथनन्दन श्रीरामचन्द्रजी ने वहीं गंगा पार की थी। महाबाहो ! उस तीर्थ ने स्थान करके मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है। ब्रह्मचर्यपालनपूर्वक एकाग्र हो गंगाजी में स्नान करके मनुष्य पापरहित होता तथा वाजपेययज्ञ का फल पाता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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