महाभारत विराट पर्व अध्याय 33 श्लोक 15-34
त्रयस्त्रिंश (33) अध्याय: विराट पर्व (गोहरण पर्व)
मैं अपने बाहुबल का भरोसा करके लड़ूँगा। राजन् ! आज आप भाइयों सहित एकान्त में खड़े होकर अब मेरा पराक्रम देखें। यह सामने जो महान् वृक्ष है, इसकी शाखाएँ बड़ी सुन्दर हैं। यह तो मानो गदा के ही रूप में खड़ा है। अतः मैं इसी को उखाड़कर इसके द्वारा शत्रुओं को मार भगाऊँगा। वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! यह कहकर भीमसेन मोनमत्त गजराज की भाँति उस वृद्वा की ओर देखने लगे। तब धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने वीर भ्राता से कहा- ‘भीमसेन ! ऐसा दुःसाहस न करो, इस वृक्ष को खड़ा रहने दो। यदि तुम इस महावृक्ष को उखाड़ने का अतिमानुष (मानवों के लिये असाध्य) कर्म करोगे, तो सब लोग पहचान लेंगे कि यह तो भीम हे। अतः भारत ! तुम किसी दूसरे मानवाचित आयुध का ही ग्रहण करो। ‘धनुष, शक्ति, खंग अथवा कुठार, जो भी मनुष्योचित्त अस्त्र-शस्त्र तुम्हें ठीक लगे; जिससे तुम दूसरों द्वारा पहचाने न जा सको, वही लेकर राजा को शीघ्र छुड़ाओ। ये महाबली नकुल और सहदेव तुम्हारे रथ के पहियों की रक्षा करेंगे। तुम तीनों भाई युद्ध में एक साथ मिलकर महाराज विराट को छुड़ाओ। वैशम्पायनजी कहते हैं- राजन् ! युधिष्ठिर के उक्त आदेश देने पर महान् वेगशाली महाबली भीमसेन ने शीघ्रता-पूर्वक एक उत्तम धनुष हाथ में ले लिया। फिर तो जैसे मेघ जल की धारा बरसाता हो, उसी प्रकार वे वेगपूर्वक बाणों की वर्षा करने लगे। तदनन्तर भीमसेन भयंकर कर्म करने वाले सुशर्मा की ओरदौडत्रे और विराट की ओर देखते हुए सुयार्मा से बोले- ‘अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह’। रथियों में श्रेष्ठ सुशर्मा पीछे की ओर से आते और ‘खड़ा रह, खड़ा रह’ कहते हुए काल, अन्तक एवं यमराज के समान भयंकर वीर पुरुष को देखकर चिन्ता में पड़ गया और अपने साथियों से बोला- ‘देखो, फिर बड़ा भारी युद्ध उपस्थित हुआ है। इसमें महान् पराक्रम दिखाओ’। ऐसा कहकर सुशर्मा भाइयों सहित धनुष उठाये लौट पड़ा। इधर महात्मा भीमसेन ने निमेषमात्र में ही गदा लेकर शत्रुओं के भयंकर धनुष धारण करने वाले रथी, हाथी सवार और घुड़सवार वीरों के एक लाख सैनिकों के समूहों को राजा विराट के समीप मार डाला और बहुत से पैदल सिपाहियों का भी संहार कर डाला। ऐसा भयानक युद्ध देख रणोन्मत्त सुशर्मा मन-ही-मन सोचने लगा, ‘जान पड़ता है, मेरी सेना बुरी तरह मारी जायगी; क्योंकि मेरा दूसरा भाई भी पहले से ही इस विशाल सैन्य-समुद्र में डूबा हुआ दिखायी देता है’। ऐसा विचार कर वह कान तक खींचे हुए धनुष के द्वारा युद्ध के लिये उद्यत दिखायी देने लगा। सुशर्मा बारंबार तीखे बाणों की झड़ी लगा रहा है, यह देखकर सम्पूर्ण मत्स्यदेशीय योद्धा त्रिगर्तों के प्रति कुपित हो दिव्यास्त्र प्रकट करते हुए अपने रथों के घोड़ों को आगे बढ़ाने लगे। पाण्डवों को त्रिगर्तों की ओर रथ लौटाते देख मत्स्यवीरों की वह विशाल वाहिनी भी लौट पड़ी। विराट के पुत्र श्वेत अत्यनत क्रोध में भरकर बड़ा अद्भुत युद्ध करने लगे। कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर ने एक हजार त्रिगर्तों को मार गिराया। भीमसेन ने सात हजार योद्धाओं को यमलोक का दर्शन कराया।। नकुल ने अपने बाधों से सात सौ सैनिकों को यमराज के घर भेज दिया तथा पुरुषों मे श्रेष्इ प्रतापी वीर सहदेव ने युधिष्ठिर की आज्ञा से तीन सौ शूरवीरों का संहार कर डाला।
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