महाभारत विराट पर्व अध्याय 5 श्लोक 30-36
पन्चम (5) अध्याय: विराट पर्व (पाण्डवप्रवेश पर्व)
क्योंकि उन्होंने देखा, वहाँ मेघ तिरछी वृष्टि करता है (जिससे खोखले में पानी नहीं भरता)। उन्हीं में उन आयुधोें को रखकर मजबमत रस्स्यिों से उन्हें अच्छी तरह बाँध दिया। इसके बाद पाण्डवों ने एक मृतक का शव लाकर उस वृक्ष की शाखा से बाँध दिया। उसे बाँधने का उद्देश्य यह था कि इसकी दुर्गन्ध नाक में पड़ते ही लोग समझ लेंगे कि इसमें सड़ी लाश बँधी है; अतः दूर से ही वे इस शमीवृक्ष को त्याग देंगे। परंतप पाण्डव इस प्रकार उस शमीवृक्ष शव बाँधकर उस वन में गाय चराने वाले ग्वालों और भेड़ पालने वाले गड़रियों से शव बाँधने का कारण बताते हुए कहते हैं- ‘यह एक सौ अस्सी वर्ष की हमारी माता है। हमारे कुल का यह धर्म है, इसलिये एकसा किया है। हमारे पूर्वज भी ऐसा ही करते आये हैं। इस प्रकार शत्रुओं का संहार करने वाले वे कुन्तीपुत्रनगर के निकट आ पहुँचे। तब युधिष्ठिर ने क्रमशः पाँचों भाइयों के जय, जयन्त, विजय, जयत्सेन और जयद्वल- ये गुप्त नाम रक्खे। तत्पश्चात् उन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार तेरहवें वर्ष का अज्ञातवास पूर्ण करने के लिये मत्स्यराष्ट्र के उस विशाल नबर में प्रवेश किया।
इस प्रकार श्रीमहाभारत विराटपर्व के अन्तर्गत पाण्डव प्रवेशपर्व में नगर प्रवेश के लिये अस्त्र स्थापना विषयक पाँचवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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