महाभारत शल्य पर्व अध्याय 16 श्लोक 24-46
षोडश (16) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
(नकुल-सहदेव अतिरिक्त) सात्यकि मेरे दाहिने चक्र की रक्षा करें और धृष्टधुम्न बायें चक्र की। आज कुन्ती कुमार अर्जुन मेरे पृष्ठभाग की रक्षा में तत्पर रहें और शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ भीमसेन मेरे आगे-आगे चलें । ऐसी व्यवस्था होने पर मैं इस महायुद्ध में शल्य से अधिक शक्तिशाली हो जाऊँगा। उसके ऐसा कहने पर राजा का प्रिय करने की इच्छा वाले भाईयों ने उस समय वैसा ही किया । तदनन्तरउस युद्धस्थल में पुनः पाण्डवसैनिक विशेषतः पांचालों, सोमकों और मत्स्यदेशीय योद्धाओं के मन में महान हर्षोल्लास छा गया । राजा युधिष्ठिर ने उस समय पूर्वोक्त प्रतिज्ञा करके मद्रराज शल्य पर चढ़ाई की। फिर तो पांचाल योद्धा शंख, भेरी आदि सैकड़ों प्रकार के प्रचुर रणवाद्य बजाने और सिंहनाद करने लगे । उन कुरूकुल के श्रेष्ठ वीरों ने रोष में भरकर महान हर्षनाद के साथ वेगशाली वीर मद्रराज शल्य पर धावा किया । वे हाथियों के घण्टों की आवाज, शंखों की ध्वनि तथा वाद्यों के महान घोष से पृथ्वी को गुँजा रहे थे । उस समय आपके पुत्र दुर्योधन तथा पराक्रमी मद्रराज शल्य ने उन सबको आगे बढ़ने से रोका। टीक, उसी तरह, जैसे अस्ताचल और उदयाचल दोनों बहुसंख्यक महामेघों को रोक देते हैं। इसी प्रकार महामना कुरूराज युधिष्ठिर ने भी सुन्दर धनुष हाथ में लेकर द्रोणाचार्य के दिये हुए नाना प्रकार के उपदेशों का प्रदर्शन करते हुए शीघ्रतापूर्वक सुन्दर एवं विचित्र रीति के बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी । रण में विचरते हुए युधिष्ठिर की कोई भी त्रुटि किसी ने नहीं देखी। मांस के लोभ से पराक्रम प्रकट करनेवाले दो सिंहों के समान वे दोनों वीर युद्धस्थल में नाना प्रकार के बाणोंद्वारा एक दूसरे को घायल करने लगे । राजन् ! भीमसेन तो आपके युद्धकुशल पुत्र दुर्योधन के साथ भिड़ गये और धृष्टधुम्न, सात्यकि तथा पाण्डुपुत्र माद्री कुमार नकुल-सहदेव सब ओर से शकुनि आदि वीरों का सामना करने लगे । नरेश्वर ! फिर विजय की अभिलाषा रखनेवाले आपके शत्रुपक्ष के योद्धाओं में उस समय घोर संग्राम छिड़ गया, जो आपकी कुमन्त्रणा का परिणाम था । दुर्योधन घोषण करके झुकी हुई गाँठ वाले बाण से संग्राम भीमसेन के स्वर्णभूषित ध्वज को काट डाला । वह देखने में मनोहर और सुन्दर ध्वज भीमसेन के देखते- देखते छोटी-छोटी घंटियों के महान समूह के साथ युद्धस्थल में गिर पड़ा । तत्पश्चात् राजा दुर्योधन ने तीखी धारवाले क्षुरप्र से भीम सेन के विचित्र धनुष को भी, जो हाथी की सूँड़ के समान था, काट डाला । धनुष कट जाने पर तेजस्वी भीमसेन पराक्रमपूर्वक आपके पुत्र की छाती में रथशक्ति का प्रहार किया। उसकी चोट खाकर दुर्योधन रथ के पिछले भाग में मुर्छित होकर बैठ गया । भरतवंशी नरेश ! सारथि के मारे जाने पर उसके घोडे़ रथ लिये चारों दिशाओं मे दौड़ लगाने लगे। उस समय आपकी सेना में हाहाकार मच गया । तब महारथी द्रोणपुत्र दुर्योधन की रक्षा के लिये दौड़ा। कृपाचार्य और कृतवर्मा भी आपके पुत्र को बचाने के लिये आ पहुँचे । इस प्रकार जब सारी सेना में हलचल मच गयी, तब दुर्योधन के पीछे चलने वाले सैनिक भय से थर्रा उठे। उस समय गाण्डीवधारी अर्जुन ने अपने धनुष को खींचकर छोडे़ हुए बाणों द्वारा उन सबको मार डाला ।
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