महाभारत शल्य पर्व अध्याय 1 श्लोक 47-55

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प्रथम (1) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: प्रथम अध्याय: श्लोक 47-55 का हिन्दी अनुवाद

उन्हें इस प्रकार गिरा हुआ देख उनके जो कोई बन्धु-बान्धव वहाँ मौजूद थे, उन्होंने राजा के शरीर पर ठंडे जल के छींटे दिये और व्यजन डुलाये। फिर बहुत देर के बाद जब राजा धृतराष्ट्र को होश हुआ, तब वे पुत्रशोक से पीड़ित हो चिन्तामग्न हो गये। प्रजानाथ ! उस समय वे घडे़ में रक्खे हुए सर्प के समान लंबी साँस खींचने लगे। राजा को इस प्रकार आतुर देखकर संयज भी वहाँ रोने लगे। फिर सारी स्त्रियाँ और यशस्विनी गान्धारी देवी भी फूट फूटकर रोने लगीं। नरश्रेष्ठ ! तत्पश्चात् बहुत देर के बाद बारंबार मोहित होते हुए धृतराष्ट्र ने विदुर से कहा- ये सारी स्त्रियाँ और यशस्विनी गान्धारी देवी भी यहाँ से चली जाय । ये समस्त सुहृद भी अब यहाँ से पधारे; क्योंकि मेरा चित्त अत्यन्त भ्रान्त हो रहा है। भरतश्रेष्ठ ! उनके ऐसा कहने पर बारंबार काँपते हुए दिुरजी ने उन सब स्त्रियों को धीरे-धीरे विदा कर दिया।। भरतभूषण! फिर वे सारी स्त्रियाँ और समस्त सुहृदगण राजा को आतुर देखकर वहाँ से चले गये। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश! तदनन्तर होश में आकर अत्यंत आतुर हो दीनभाव से विलाप करते हुए राजा धृतराष्ट्र की ओर संजय ने देखा। उस समय बांरबार लंबी साँस खींचते हुए राजा धृतराष्ट्र को विदुर जी ने हाथ जोड़कर अपनी मधुर बाणीद्वारा आश्वासन दिया।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में धृतराष्ट्र मोहविषयक पहला अध्याय पूरा हुआ।।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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