महाभारत शल्य पर्व अध्याय 21 श्लोक 1-17

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एकविंश (21) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: एकविंश अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

  सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध, कृतवर्मा का युद्ध और उसकी पराजय और कौरव सेना का पलायन

संजय कहते हैं- राजन् ! युद्ध में शोभा पाने वाले शूरवीर शाल्व के मारे जाने पर आपकी सेना के पाँव उखड़ गये। जैसे वेगपूर्वक चली हुई वायु के झोंके से कोई विशाल वृक्ष उखड़ गया हो। अपनी सेना का व्यूह भंग हुआ देखकर महाबलवान् महारथी शूरवीर कृतवर्मा ने समरांगण शत्रुकी सेना आगे बढ़ने से रोक दिया । राजन् । कृतवर्मा को युद्धस्थल में डटा हुआ देख वे भागे हुए शूरमा भी लौट आये। युद्धस्थल में बाणों की वर्षा से आच्छादित होने पर भी वह सात्वतवंशी वीर पर्वत के समान अविचल भाव से खड़ा था । महाराज ! तदनन्तर लौटे हुए कौरवों का पाण्डवों के साथ मृत्यु को ही युद्ध से निवृति की सीमा नियत करके घोर संग्राम होने लगा । वहाँ कृतवर्मा का शत्रुओं के साथ होने वाला युद्ध अत्यन्त आश्चर्यजनक प्रतीत होता था; क्योंकि उसने अकेले ही दुर्जय पाण्डव-सेना की प्रगति रोक दी थी । एक दूसरे हित चाहनेवाले कौरवसैनिक कृतवर्मा के द्वारा यह दुष्कर पराक्रम किये जाने पर अत्यन्त हर्ष में भर गये। उनका महान् सिंहनाद आकाश में गूँज उठा । भरतश्रेष्ठ ! उनकी उस गर्जना से पांचाल सैनिक थर्रा उठे। उस समय शिनिपौत्र महाबाहु सात्यकि उन शत्रुओं का सामना करने के लिये आये । उन्होंने आते ही महाबली राजा क्षेमधूर्ति को सात पैने बाणों से मारकर यमलोक पहुँचा दिया । तीखें बाणों की वर्षा करते हुए शिनि-पौत्र महाबाहु सात्यकि को आते देख बुद्धिमान् कृतवर्मा बडे़ वेग से उनका सामना करने के लिये आ पहुँचा । फिर तो उत्तम अस्त्र-शस्त्र धारण करनेवाले, रथियों में श्रेष्ठ, महापराक्रमी, धनुर्धर वीर सात्वतवंशी सात्यकि और कृतवर्मा एक दूसरे पर धावा करने लगे । उन दोनों के घोर संग्राम में पांचालों सहित पाण्डव और दूसरे नृपश्रेष्ठ योद्धा दर्शक होकर तमाशा देखने लगे। वृष्णि और अंधकवंश के वे दोनों वीर महारथी हर्ष में भरकर लड़ते हुए दो हाथियों के समान एक दूसरे पर नाराचों और वत्सदन्तों का प्रहार करने लगे। कृतवर्मा और सात्यकि दोनों नाना प्रकार के पैंतरे दिखाते हुए विचरते थे और बारंबार बाणों की वर्षा करके वे एक दूसरे को अदृश्य कर देते थे । वृष्णिवंश के उन दोनों सिंहों के धनुष के वेग और बल से चलाये हुए शीघ्रगामी बाणों को हम आकाश में छिपाये हुए टिड्डीदलों के समान देखते थे । कृतवर्मा अद्वितीय वीर सत्यपराक्रमी सात्यकि के पास पहुँचकर चार पैने बाणों से उनके चारों घाड़ों को घायल कर दिया । तब महाबाहु सात्यकि ने अंकुशों की चोट खाये हुए गजराज के समान अत्यन्त क्रोध में भरकर आठ उत्तम बाणो द्वारा कृतवर्मा को घायल कर दिया । यह देख कृतवर्मा ने धनुष को पूर्णतः खींचकर छोडे़ गये और शिलापर तेज किये हुए तीन बाणों से सात्यकि को घायल करके एकसे उनके धनुष को काट डाला।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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