महाभारत शल्य पर्व अध्याय 23 श्लोक 47-68
त्रयोविंश (23) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
भरतकुलभूषण नरेश ! उस समय सब ओर गिरते हुए प्रासों का स्वरूप आकाश में छाये हुए टिड्डीदलों के समान जान पड़ता था । सैकड़ों और हजारों घोड़ें अपने घायल सवारों के साथ सारे अंगों में लहू-लुहान होकर धरती पर गिर रहे थे । बहुत-से सैनिक परस्पर टकराकर एक दूसरे से पिस जाते और क्षत-विक्षत हो मुखों से रक्त वमन करते हुए दिखायी देते थे । शत्रुदमन नरेश ! तत्पश्चात् जब सेना द्वारा उठी हुई धूल से सब ओर घोर अन्धकार छा गया, उस समय हमने देखा कि बहुत-से योद्धा वहाँ से भागे जा रहे हैं । राजन् ! धूल से सारा रणक्षेत्र भर जाने के कारण अँधेरे-में बहुत-से घोड़ों और मनुष्यों को भी हमने भागते देखा था। कितने ही योद्धा पृथ्वी पर गिरकर मुँह से बहुत-सा रक्त वमन कर रहे थे । बहुत-से मनुष्य परस्पर केश पकड़कर इतने सट गये थे कि कोई चेष्टा नहीं कर पाते थे। कितने ही महाबली योद्धा एक दूसरे को घोड़ों की पीठों से खींच रहे थे । बहुत-से सैनिक पहलवानों की भाँति परस्पर भिड़कर एक दूसरे पर चोट करते थे। कितने ही प्राणशून्य होकर अश्वों द्वारा इधर-उधर घसीटे जा रहे थे । बहुतेरे विजयाभिलाषी तथा अपने को शूरवीर माननेवाले हजारों रक्तरंजित शरीरों से रणभूमि आच्छादित दिखायी देती थी।। सवारों सहित घोड़ों की लाशों पटे हुए भूतल पर किसी के लिये भी घोड़े द्वारा दूर तक जाना असम्भव हो गया था।। योद्धाओं के कवच रक्त से भीग गये थे। वे सब हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिये धनुष उठाये नाना प्रकार के भयंकर आयुधों द्वारा एक दूसरे के वध की इच्छा रखते थे। उस संग्राम में सभी योद्धा अत्यन्त निकट होकर युद्ध करते थे और उनमें से अधिकांश सैनिक मार डाले गये थे । प्रजानाथ ! शकुनि वहाँ दो घड़ी युद्ध करके शेष बचे हुए छः हजार घुड़सवारों के साथ भाग निकला । इसी प्रकार खून से नहायी हुई पाण्डव सेना भी शेष छःहजार घुड़सवारों के साथ युद्ध से निवृत हो गयी। उसके सारे वाहन थक गये थे । उस समय उस निकटवर्ती महायुद्ध में प्राणों का मोह छोड़कर जूझने वाले पाण्डव सेना के रक्तरंजित घुड़सवार इस प्रकार बोले- । यहां रथों द्वारा भी युद्ध नहीं किया जा सकता। फिर बडे़-बडे़ हाथियों की तो बात ही क्या है ? रथ रथों का सामना करने के लिये जाय हाथी हाथियों का। शकुनि भागकर अपनी सेना में चला गया। अब फिर राजा शकुनि युद्ध में नहीं आयेगा । उनकी यह बात सुनकर द्रौपदी के पाँचों पुत्र और वे मतवाले हाथी वहीं चल गये, जहाँ पांचाल राजकुमार महारथी धृष्टधुम्न थे । कुरूनन्दन ! वहाँ धूल का बादल-सा घिर आया था। उस समय सहदेव भी अकेले ही, जहाँ राजा युधिष्ठिर थे, वहीं चले गये। उन सबके चले जाने पर सुबलपुत्र शकुनि पुनः कुपित हो पाश्र्वभाग से आकर धृष्टधुम्न की सेना का संहार करने लगा।। फिर तो परस्पर वध की इच्छा वाले आपके और शत्रुपक्ष के सैनिकों में प्राणों का मोह छाड़कर भयंकर युद्ध होने लगा । राजन् ! शूरवीरों के उस संघर्ष में सब ओर से सैकड़ों हजारों योद्धा टूट पडे़ और वे एक-दूसरे की ओर देखने लगे।। उस लोकसंहारकारी संग्राम में तलवरों से काटे जाते हुए मस्तक जब पृथ्वी पर गिरते थे, तब उनसे ताड़ के फलों के गिरने की-सी धमाके की आवाज होती थी ।
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