महाभारत शल्य पर्व अध्याय 27 श्लोक 41-57
सप्तविंश (27) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
सत्येषु का वध कर के अर्जुन ने सुशर्मा को तीन बाणों से घायल कर दिया और उन समस्त स्वर्णभूषित रथों का विध्वंस कर डाला । तत्पश्चात् पार्थ अपने दीर्धकाल से संचित किये हुए तीखे क्रोध रूपी विष को प्रस्थलेश्वर सुशर्मा पर छोड़ने के लिये तीव्र गति से आगे बढ़े । भरतश्रेष्ठ ! अर्जुन ने सौ बाणों द्वारा उसे आच्छादित कर के उस धनुर्धर वीर के घोड़ों पर घातक प्रहार किया । इसके बाद यमदण्ड के समान भयंकर बाण हाथ में लेकर सुशर्मा को लक्ष्य कर के हंसते हुए से शीघ्र ही छोड़ दिया । क्रोध से तमतमाये हुए धनुर्धर के अर्जुन के द्वारा चलाये गये उस बाण ने सुशर्मा पर चोट कर के उसकी छाती छेद डाली । महाराज ! सुशर्मा आपके पुत्रों को व्यथित और समस्त पाण्डवों को आनन्दित करता हुआ प्राणशून्य हो कर पृथ्वी पर गिर पड़ा । रणभूमि में सुशर्मा का वध करके अर्जुन ने अपने बाणों द्वारा उसके पैंतालीस महारथी पुत्रों को भी यमलोक पहुंचा दिया । तदनन्तर पैन बाणों द्वारा उसके सारे सेवकों का संहार करके महारथी अर्जुन ने मरने से बची हुई कौरवी सेना पर आक्रमण किया । जनेश्वर ! दूसरी आर कुपित हुए भीमसेन ने हंसते-हंसते बाणों की वर्षा करके सुदर्शन को ढक दिया। फिर क्रोधपूर्वक अटटहास करते हुए उन्होंने उसके मस्तक को तीखे क्षुरप्र द्वारा धड़ से काट लिया। सुदर्शन मरकर पृथ्वी पर गिर पड़ा ।उस वीर के मारे जाने पर उसके सेवकों ने नाना प्रकार के बाणों की वर्षा करते हुए रणभूमि में भीमसेन को सब ओर से घेर लिया । तत्पश्चात् भीमसेन ने इन्द्र के वज्र की भांति कठोर स्पर्श वाले तीखे बाणों द्वारा आपकी सेना को चारों ओर से ढक दिया । भरतश्रेष्ठ ! इसके बाद भीमसेन ने क्षणभर में आपकी सेना का संहार कर डाला। भारत ! जब उन कौरव सैनिकों का संहार होने लगा, तब महारथी सेनापतिगण भीमसेन पर आक्रमण करके उनके साथ युद्ध करने लगे । राजन् ! पाण्डुपुत्र भीमसेन ने उन सब पर भयंकर बाणों की वृष्टि की। इसी प्रकार आपके सैनिकों ने भी बड़ी भारी बाण वर्षा करके पाण्डव महारथियों को सब ओर से आच्छादित कर दिया । शत्रुओं के साथ जूझने वाले पाण्डवों का और पाण्डवों के साथ युद्ध की इच्छा रखने वाले आपके सैनिकों का सारा सैन्य दल समरांगण में परस्पर मिलकर एक सा हो गया । राजन् ! उस समय वहां एक-दूसरे की मार खाकर दोनों दलों के योद्धा अपने भाई बन्धुओं के लिये शोक करते हुए धराशायी हो जाते थे ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व में सुशर्मा का वध विषयक सत्ताईसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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