महाभारत शल्य पर्व अध्याय 28 श्लोक 61-68

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अष्टाविंश (28) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टाविंश अध्याय: श्लोक 61-68 का हिन्दी अनुवाद

तत्पश्चात् शीघ्रता करने वाले सहदेव ने अच्छी तरह संधान करके छोड़े गये सुवर्णमय पंख वाले लोहे के बने हुए सुदृढ़ भल्ल के द्वारा, जो समस्त आवरणों को छेद डालने वाला था, शकुनि के मस्तक को पुनः धड़ से काट गिराया । वह सुवर्णभूषित बाण सूर्य के समान तेजस्वी तथा अच्छी तरह संधान करके चलाया गय था। उसके द्वारा पाण्डुकुमार सहदेव ने युद्धस्थल में जब सुबल पुत्र शकुनि का मस्तक काट डाला, तब वह प्राणशून्य होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा । क्रोध में भरे हुए पाण्डु पुत्र सहदेव ने शिला पर तेज किये हुए और सुवर्णमय पंख वाले वेगवान् बाण से शकुनि के उस मस्तक को काट गिराया, जो कौरवों के अन्याय का मूल कारण था । राजन् ! वीर सहदेव ने जब उसकी गोल-गोल सुन्दर दोनों भुजाएं काट दीं, उसके पश्चात् राजा शकुनि का भयंकर धड़ लहूलुहान होकर श्रेष्ठ रथ से नीचे गिर पड़ा और छटपटाने लगा । शकुनि को मस्तक से रहित एवं खून से लथपथ होकर पृथ्वी पर पड़ा देख आपके योद्धा भय के कारण अपना धैर्य खो बैठे और हथियार लिये हुए सम्पूर्ण दिशाओं में भाग गये ।। उनके मुख सूख गये थे। उनकी चेतना लुप्त सी हो रही थी। वे गाण्डीव की टंकार से मृतप्राय हो रहे थे; उनके रथ, घोड़े और हाथि नष्ट हो गये थे; अतः वे भय से पीड़ितहो आपके पुत्र दुर्योधन सहित पैदल ही भाग चले । भरतनन्दन ! रथ से शकुनि को गिरा कर समरागंण में श्रीकृष्ण सहित समस्त पाण्डव अत्यन्त हर्ष में भरकर सैनिकों का हर्ष बढ़ाते हुए प्रसन्नतापूर्वक शंखनाद करने लगे । सहदेव को देख कर युद्ध क्षेत्र में सब लोग उनकी पूजा (प्रशंसा) करते हुए इस प्रकार कहने लगे-वीर ! बड़े सौभाग्य की बात है कि तुमने रणभूमि में कपट द्यूत के विधायक महामना शकुनि को पुत्र सहित मार डाला है’ ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व में शकुनि और उलूक का वध विषयक अटठाईसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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