महाभारत शल्य पर्व अध्याय 30 श्लोक 39-60

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त्रिंश (30) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: त्रिंश अध्याय: श्लोक 39-60 का हिन्दी अनुवाद

भरतभूषण ! नरेश ! तदनन्तर जब पाण्डव खिन्न होकर बैठे हुए थे, उसी समय वे व्याध राजा दुर्योधन को अपनी आंखों देखकर तुरंत ही उस स्थान से हट गये और बड़े हर्ष के साथ पाण्डव-शिबिर में जा पहुंचे। द्वारपालों के रोकने पर भी वे भीमसेन के देखते-देखते भीतर घुस गये । महाबली पाण्डुपुत्र भीमसेन के पास जाकर उन्होंने सरोवर के तट पर जो कुछ हुआ था और जो कुछ सुनने में आया था, वह सब कह सुनाया । राजन् ! तब शत्रुओं को संताप देने वाले भीम ने व्याधों को बहुत धन देकर धर्मराज से सारा समाचार कहा । वे बोले-‘धर्मराज ! मेरे व्याधों ने राजा दुर्योधन का पता लगा लिया है। आप जिसके लिये संतप्त हैं, वह माया से पानी बांध कर सरोवर में सो रहा है’ । प्रजानाथ ! भीमसेन का वह प्रिय वचन सुनकर अजात शत्रु कुन्तीकुमार युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ बड़े प्रसन्न हुए ।। महाधनुर्धर दुर्योधन को पानी से भरे सरोवर में घुसा सुन कर राजा युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण को आगे करके शीघ्र ही वहां से चल दिये । प्रजानाथ ! फिर तो हर्ष में भरे हुए पाण्डव और पान्चालों की किलकिलाहट का शब्द सब ओर गूंजने लगा । भरतभूषण नरेश ! वे सभी क्षत्रिय सिंहनाद एवं गर्जना करने लगे तथा तुरंत ही द्वैपायन नामक सरोवर के पास जा पहुंचे ।हर्ष में भरे हुए सोमक वीर रणभूमि में सब ओर पुकार पुकार कर कहने लगे ‘धृतराष्ट्र के पापी पुत्र का पता लग गया और उसे देख लिया गया’ । पृथ्वीनाथ ! वहां शीघ्रतापूर्वक यात्रा करने वाले उनके वेगशाली रथों का घोर घर्घर शब्द आकाश में व्याप्त हो गया । भारत ! उस समय अर्जुन, भीमसेन, माद्रीकुमार पाण्डुपुत्र नकुल-सहदेव, पान्चालराज कुमार धृष्टद्युम्न, अपराजित वीर शिखण्डी, उत्तमौजा, युधामन्यु, महारथी सात्यकि, द्रौपदी के पांचो पुत्र तथा पान्चालों में से जो जीवित बच गये थे, वे वीर दुर्योधन को पकड़ने की इच्छा से अपने वाहनों के थके होने पर भी बड़े उतावली के साथ राजा युधिष्ठिर के पीछे-पीछे गये। उनके साथ सभी घुड़सवार, हाथीसवार और सैकड़ों पैदल सैनिक भी थे । महाराज ! तत्पश्चात् प्रतापी धर्मराज युधिष्ठिर उस भयंकर द्वैपायनह्रद के तट पर जा पहुंचे, जिसके भीतर दुर्योधन छिपा हुआ था । उसका जल शीतल और निर्मल था। वह देखने में मनोरम और दूसरे समुद्र के समान विशाल था। भारत ! उसी के भीतर मायाद्वारा जल को स्तम्भित करके दैवयोग एवं अदभुत विधि से आपका पुत्र विश्राम कर रहा था । प्रभो ! नरेन्द्र ! हाथ में गदा लिये राजा दुर्योधन जल के भीतर सोया था। उस समय किसी भी मनुष्य के लिये उसको देखना कठिन था । तदनन्तर पानी के भीतर बैठे हुए राजा दुर्योधन ने मेघ की गर्जना के समान भयंकर शब्द सुना । राजेन्द्र ! महाराज ! आपके पुत्र का वध करने के लिये राजा युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ उस सरोवर के तट पर आ पहुंचे । वे महान् शंखनाद तथा रथ के पहियों की घर्घराहट से पृथ्वी को कंपाते और धूल का महान् ढेर ऊपर उड़ाते हुए वहां आये थे। युधिष्ठिर की सेना का कोलाहल सुन कर कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा तीनों महारथी राजा दुर्योधन से इस प्रकार बोले-


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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