महाभारत शल्य पर्व अध्याय 34 श्लोक 1-21

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चतुस्त्रिश (34) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: चतुस्त्रिश अध्याय: श्लोक 1-21 का हिन्दी अनुवाद


बलरामजी का आगमन और स्वागत तथा भीमसेन और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ

संजय कहते हैं-महाराज ! वह अत्यन्त भयंकर युद्ध जब आरम्भ होने लगा और समस्त महात्मा पाण्डव उसे देखने के लिये बैठ गये, उस समय अपने दोनों शिष्यों का संग्राम उपस्थित होने पर उसका समाचार सुन तालचिन्हित ध्वज वाले हलधारी बलरामजी वहां आ पहुंचे । उन्हें देखकर श्रीकृष्ण सहित पाण्डव बड़े प्रसन्न हुए। उन्होंने निकट जाकर उनका चरणस्पर्श किया और विधि पूर्वक उनकी पूजा की। राजन् ! पूजन के पश्चात् उन्होंने इस प्रकार कहा-‘बलरामजी ! अपने दोनों शिष्यों का युद्ध कौशल देखिये’ । उस समय बलरामजी ने श्रीकृष्ण, पाण्डव तथा हाथ में गदा लेकर खड़े हुए कुरुवंशी दुर्योधन की ओर देखकर कहा-‘माधव ! तीर्थ यात्रा के लिये निकले हुए आज मुझे बयालीस दिन हो गये। पुष्य नक्षत्र में चला था और श्रवण नक्षत्र में पुनः वापस आया हूं। मैं अपने दोनों शिष्यों का गदा युद्ध देखना चाहता हूं’ । तदनन्तर गदा हाथ में लेकर दुर्योधन और भीमसेन युद्ध भूमि में उतरे। वे दोनों ही वीर वहां बड़ी शोभा पा रहे थे । उस समय राजा युधिष्ठिर ने बलरामजी को हृदय से लगा कर उनका स्वागत किया और यथोचितरूप से उनका कुशल समाचार पूछा । यशस्वी महाधनुर्धर श्रीकृष्ण और अर्जुन भी बलरामजी को प्रणाम करके अत्यन्त प्रसन्न हो प्रेमपूर्वक उनके हृदय से लग गये । राजन् ! माद्री के दोनों शूरवीर पुत्र नकुल-सहदेव और द्रौपदी के पांचो पुत्र भी रोहिणीनन्दन महाबली बलरामजी को प्रणाम करके उनके पास विनीत भाव से खड़े हो गये । नरेश्वर ! भीमसेन और आपका बलवान् पुत्र दुर्योधन इन दोनों ने गदा को ऊंचे उठा कर बलरामजी के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया । समादर करके वहां महात्मा रोहिणी पुत्र बलरामजी से बोले-‘महाबाहो ! युद्ध देखिये’ । उस समय बलरामजी ने पाण्डवों, सृंजयों तथा अमित बलशाली सम्पूर्ण भूपालों को हृदय से लगा कर उनका कुशल मंगल पूछा । उसी प्रकार वे राजा भी उनसे मिल कर उनके आरोग्य का समाचार पूछने लगे। हलधर ने सम्पूर्ण महामनस्वी क्षत्रियों का समादर करके अवस्था के अनुसार क्रमशः उनसे कुशल मंगल की जिज्ञासा की और श्रीकृष्ण तथा सात्यकि को प्रेमपूर्वक छाती से लगा लिया । राजन् ! इन दोनों का मस्तक सूंघ कर उन्होंने कुशल समाचार पूछा और उन दोनों ने भी अपने गुरुजन बलरामजी का विधिपूर्वक पूजन किया। ठीक उसी तरह, जैसे इन्द्र और उपेन्द्र ने प्रसन्नतापूर्वक देवेश्वर ब्रह्माजी की पूजा की थी । भारत ! तत्पश्चात् धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने शत्रुदमन रोहिणी कुमार से कहा-‘बलरामजी ! दोनों भाइयों का यह महान युद्ध देखिये’। उनके ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण के बड़े भ्राता महाबाहु बलवान् श्रीराम उन महारथियों से पूजित हो उनके बीच में अत्यन्त प्रसन्न होकर बैठे । राजाओं के मध्य भाग में बैठे हुए नीलाम्बरधारी गौर कान्ति बलरामजी आकाश में नक्षत्रों से घिरे हुए चन्द्रमा के समान शोभा पा रहे थे । राजन् ! तदनन्तर आपके उन दोनों पुत्रों में वैर का अन्त कर देने वाला भयंकर एवं रोमान्चकारी संग्राम होने लगा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलरामजी का आगमन विषयक चौंतीसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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