महाभारत शल्य पर्व अध्याय 46 श्लोक 98-108
षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
कोई उनके विषय में यह निश्चय करने लगे कि ‘ये ब्रह्माजी के पुत्र, सबके अग्रज एवं ब्रह्मयोनि सनत्कुमार हैं’ । कोई उन्हें महादेवजी का, कोई अग्नि का, कोई पार्वती का, कोई कृत्तिकाओं का और कोई गंगाजी का पुत्र बताने लगे । उन महाबली योगेश्वर स्कन्द देव को लोग एक, दो, चार, सौ तथा सहस्त्रों रूपों में देखते और जानते हैं । राजन् ! यह मैंने तुम्हें कार्तिकेय के अभिषेक का प्रसंग सुनाया है। अब तुम सरस्वती के उस श्रेष्ठ तीर्थ की पावनता का वर्णन सुनो । महाराज ! कुमार कार्तिकेय के द्वारा देवशत्रुओं के मारे जाने पर वह श्रेष्ठ तीर्थ दूसरे स्वर्ग के समान सुखदायक हो गया । वहीं रहकर स्वामी स्कन्द ने पृथक्-पृथक् ऐश्वर्य प्रदान किये। अग्नि कुमार ने अपनी सेना के मुख्य मुख्य अधिकारियों को तीनों लोक सौंप दिये । महाराज ! इस प्रकार दैत्यकुलविनाशक देव सेनापति भगवान स्कन्द का उस तीर्थ में देवताओं द्वारा अभिषेक किया गया । भरतश्रेष्ठ ! वह तैजस नाम का तीर्थ है, जहां पहले जल के स्वामी वरुणदेव का दवताओं द्वारा अभिषेक किया गया था । उस श्रेष्ठ तीर्थ में हलधारी बलराम ने स्नान करके स्कन्द देव का पूजन किया और ब्राह्मणों को सुवर्ण, वस्त्र एवं आभूषण दिये । शत्रुवीरों का संहार करने वाले मधुवंशी हलधर वहां रात भर रहे और उस श्रेष्ठ तीर्थ का पूजन एवं उसके जल में स्नान करके हर्ष से खिल उठे। उन यदुश्रेष्ठ बलराम का मन वहां प्रसन्न हो गया था । राजन् ! तुम मुझसे जो कुछ पूछ रहे थे, वह सब प्रसंग मैंने तुम्हें कह सुनाया। समागत देवताओं द्वारा किस प्रकार भगवान स्कन्द का अभिषेक हुआ और किस प्रकार बाल्यावस्था में ही वे महाबली कुमार सेनापति बना दिये गये, यह सब कुछ बता दिया गया ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा एवं सार स्वतोपाख्यान के प्रसंग में तारकासुर का वध विषयक छियालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।
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