महाभारत शल्य पर्व अध्याय 48 श्लोक 62-68

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अष्टचत्वारिंश (48) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: अष्टचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 62-68 का हिन्दी अनुवाद

प्रजानाथ ! पावन सुगंध से युक्त पवित्र वायु चलने लगी। शुभलक्षणा श्रुतावती अपने शरीर को त्याग कर इन्द्र की भार्या हो गयी। अच्युत ! वह अपनी उग्र तपस्या से इन्द्र को पाकर उनके साथ रमण करने लगी । जनमेजय ने पूछा-भगवन् ! शोभामयी श्रुतावती की माता कौन थी और वह कहां पली थी ? यह मैं सुनना चाहता हूं। विप्रवर ! इसके लिये मेरे मन में बड़ी उत्कण्ठा हो रही है । वैशम्पायनजी ने कहा-राजन् ! एक दिन विशाल नेत्रों वाली घृताची अप्सरा कहीं से आ रही थी। उसे देखकर महात्मा महर्षि भरद्वाज का वीर्य स्खलित हो गया । जप करने वालों में श्रेष्ठ ऋषि ने उस वीर्य को अपने हाथ में ले लिया, परंतु वह तत्काल ही एक पत्ते के दोने में गिर पड़ा ? वहीं वह कन्या प्रकट हो गयी । तपस्या के धनी धर्मात्मा महामुनि भरद्वाज ने उसके जात कर्म आदि सब संस्कार करके देवर्षियों की सभा में उसका नाम श्रुतावती रख दिया। फिर वे उस कन्या को अपने आश्रम में रखकर हिमालय के जंगल में चले गये थे । वृष्णिवंशावतंस महानुभाव बलरामजी उस तीर्थ में भी स्नान और श्रेष्ठ ब्राह्मणों को धन का दान करके उस समय एकाग्रचित्त हो वहां से इन्द्र-तीर्थ में चले गये ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा और सारस्वतोपाख्यान के प्रसंग में बदरपाचन तीर्थ का वर्णन विषयक अड़तालीसवां अध्याय पूरा हुआ ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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