महाभारत शल्य पर्व अध्याय 51 श्लोक 41-53
एकपन्चाशत्तम (51) अध्याय: शल्य पर्व (गदा पर्व)
जब बारह वर्षो की वह अनावृष्टि प्रायः बीत गयी, तब महर्षि पुनः स्वाध्याय के लिये एक-दूसरे से पूछने लगे । राजेन्द्र ! उस समय भूख से पीडि़त होकर इधर-उधर दौड़ने वाले सभी महर्षि वेद भूल गये थे। कोई भी ऐसा प्रतिभाशाली नहीं था, जिसे वेदों का स्मरण रह गया हो । तदनन्तर उनमें से कोई ऋषि प्रतिदिन स्वाध्याय करने वाले शुद्धात्मा मुनिवर सारस्वत के पास आये । फिर वहां से जाकर उन्होंने सब महर्षियों को बताया कि ‘देवताओं के समान अत्यन्त कान्तिमान् एक सारस्वत मुनि हैं, जो निर्जन वन में रहकर सदा स्वाध्याय करते हैं’ । राजन् ! यह सुनकर वे सब महर्षि वहां आये और आकर मुनिश्रेष्ठ सारस्वत से इस प्रकार बोले-‘मुने ! आप हम लोगों को वेद पढ़ाइये।’ तब सारस्वत ने उनसे कहा-‘आप लोग विधिपूर्वक मेरी शिष्यता ग्रहण करें’। तब वहां उन मुनियों ने कहा-‘बेटा ! तुम तो अभी बालक हो’ ( हम तुम्हारे शिष्य कैसे हो सकते हैं ? ) तब सारस्वत ने पुनः उन मुनियों से कहा-‘मेरा धर्म नष्ट न हो, इसलिये मैं आप लोगों को शिष्य बनाना चाहता हूं; क्योंकि जो अधर्म पूर्वक वेदों का प्रवचन करता है तथा जो अधर्म पूर्वक उन वेद मन्त्रों को ग्रहण करता है, वे दोनों शीघ्र ही हीनावस्था को प्राप्त होते हैं अथवा दोनों एक-दूसरे के वैरी हो जाते हैं । ‘न बहुत वर्षो की अवस्था होने से, न बाल पकने से, न धन से और न अधिक भाई-बन्धुओं से कोई बड़ा होता है। ऋषियों ने हमारे लिये यही धर्म निश्चित किया है कि हममें से जो वेदों का प्रवचन कर सके, वही महान् है’ । सारस्वत की यह बात सुनकर वे मुनि उनसे विधिपूर्वक वेदों का उपदेश पाकर पुनः धर्म का अनुष्ठान करने लगे । साठ हजार मुनियों ने स्वाध्याय के निमित्त ब्रह्मर्षि सारस्वत की शिष्यता ग्रहण की थी । वे ब्रह्मर्षि यद्यपि बालक थे तो भी वे सभी बड़े-बड़े महर्षि उनकी आज्ञा के अधीन रहकर उनके आसन के लिये एक-एक मुटठी कुश ले आया करते थे । श्रीकृष्ण के बड़े भाई महाबली रोहिणीनन्दन बलरामजी वहां भी स्नान और धन दान करके प्रसन्नतापूर्वक क्रमशः सब तीर्थो में विचरते हुए उस विख्यात महा तीर्थ में गये, जहां कभी वृद्धा कुमारी कन्या निवास करती थी ।
इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्य पर्व के अन्तर्गत गदा पर्व में बलदेवजी की तीर्थ यात्रा के प्रसंग में सारस्वतोपाख्यान विषयक इक्यावनवां अध्याय पूरा हुआ ।
« पीछे | आगे » |